माह-ए-रमजान का पहला रोजा : अल्लाह की इबादत संग दिखा सहरी इफ्तार का रंग

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गोरखपुर। पिछले एक सप्ताह से घरों और मस्जिदों में जिस मुबारक माह की आमद की तैयारियां चल रही थी वह माह-ए-रमजान शुरु हो चुका है। सहरी-इफ्तार की लज्जत, जिक्र, शुक्र, सब्र, नेमत, रहमत, कुरआन-ए-पाक की तिलावत, नमाज का वसूल, रोजे की रूहानियत लेकर फिर आ गया है माह-ए-रमजान। चारों तरफ माह-ए-रमजान का नूर है। 

 

रविवार की सुबह लोगों ने मिलकर सहरी खाई। तहज्जुद की नमाज़ पढ़ने के बाद फ़ज्र की नमाज़ अदा की। कुरआन-ए-पाक की तिलावत की। तस्बीह व दुआ में अल्लाह की हम्द व सना बयान की। मस्जिदों में दरूदो सलाम पढ़ा गया। सुबह से ही लोग इबादत में जुट गए तो यह सिलसिला देर रात तक चलता रहा। शहर की हर मस्जिद में नमाजियों की भीड़ उमड़ी। घरों में महिलाओं ने नमाज़ पढ़ी व कुरआन-ए-पाक की तिलावत की। चूंकि रमजान के तीस दिनों को तीन हिस्सों में बांटा गया है यानी रहमत, मगफिरत, जहन्नम से आजादी। पहला अशरा रहमत का चल रहा है, इसलिए सभी अल्लाह तआला की रहमत से मालामाल होना चाह रहे हैं। 

 

जोहर की नमाज़ के बाद लोगों ने बाज़ार की तरफ रुख़ किया। इफ्तारी के तमाम सामानों की खरीदारी की। इसके बाद घरों में महिलाओं ने इफ्तार के विभिन्न पकवानों को बनाना शुरु किया। असर की नमाज़ घरों व मस्जिदों में अदा की गई। इफ्तार तैयार होने के बाद मुसाफिरों व गरीबों के लिए मस्जिदों में भेजी गई। पास पड़ोस में भी इफ़्तार भेजी गई। शाम को सभी ने एक दस्तरख़्वान पर इफ्तार कर, दुआ मांगी। तरह-तरह के खजूर, चिप्स, चना, पकोड़ियां व फल वगैरा ने दिन भर की भूख को गायब कर दिया। 

 

इफ्तार करने के बाद छोटे से लेकर बड़ों ने मगरिब की नमाज़ अदा की। थोड़ा आराम किया फिर रात में इशा, तरावीह, वित्र एवं नफ्ल नमाज़ पढ़ी। यह नज़ारा पूरे माह इसी तरह बरकरार रहेगा। जाफरा बाज़ार, नखास, घंटाघर, रेती, शाह मारूफ वगैरा की फिज़ा देखते ही बन रही है। सेवई व खजूर, सहरी-इफ्तार की दुकानें सज चुकी हैं। तरावीह की नमाज के बाद उन पर भीड़ उमड़ रही है। 

 

रोजा तमाम बीमारियों का इलाज है : डॉ. सना

 

डॉ. सना सुम्बुल ने बताया कि रोजा रखने में बहुत सी हिकमतें हैं। रोजा रखने से भूख और प्यास की तकलीफ का पता चलता है। जिससे खाना-पानी की कद्र मालूम होती है और इंसान अल्लाह का शुक्र अदा करता है। रोजे से भूखों और प्यासों पर मेहरबानी का जज्बा पैदा होता है क्योंकि मालदार अपनी भूख याद करके गरीब मोहताज की भूख का पता लगाता है। रोजे से भूख के बर्दाश्त करने की आदत पड़ती है। अगर कभी खाना मयस्सर न हो तो घबराता नहीं और अल्लाह की नाशुक्री नहीं करता। भूख बहुत सी बीमारियों का इलाज है। डॉक्टर व हकीम बताते हैं कि रोजा बहुत सी बीमारियों का इलाज है क्योंकि इससे कुव्वते हाजमा की इस्लाह होती है। रोजा ब्लड प्रेशर, कैंसर, फालिज, मोटापा, चमडे़ की बीमारियों और भी बहुत सारी बीमारियों में फायदा बख्श है जैसा कि विशेषज्ञों का शोध है। रोजा सिर्फ इंसान ही की तरफ से अदा की जाने वाली इबादत है। फरिश्ते और दीगर मख्लूक इसमें शामिल नहीं और रोजा रखने की सबसे बड़ी हिक्मत यह है कि इससे परेहजगारी मिलती है जैसा कि अल्लाह का फरमान है।

 

रोजा रखकर दूसरे की भूख का अहसास होता है : मुफ्ती मेराज

 

मदीना मस्जिद रेती चौक के इमाम मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने बताया कि साल के बारह माह में रमजान शरीफ सबसे खास महीना होता है। पूरे महीने लोग रोजा रखकर अल्लाह की इबादत और अन्य नेक काम करते हैं। इस माह में नेकी करने वालों को बहुत अधिक सवाब मिलता है। रोजेदार अपनी दिनचर्या में अधिक से अधिक अल्लाह का जिक्र और जकात व अन्य सदका खैरात करें। लोगों को इस माह अपने अंदर के गुस्से को निकाल देना चाहिए। यह एक तरह से प्रशिक्षण का माह होता है। रोजा रखकर दूसरे की भूख का अहसास होता है इसलिए तमाम मुसलमानों को चाहिए कि अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए खुशदिली से रोजा रखें और अल्लाह के इनाम के हकदार बनें। खूब इबादत करें और इस माह-ए-मुबारक के फैज से मालामाल हों।

  • Syed Farhan Ahmad

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