रमजान सब्र, भलाई, रहमत व बरकत का महीना

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गोरखपुर। माह-ए-रमजान सब्र, भलाई, रहमत और बरकत का महीना है। रमजान में मुसलमान गरीब, असहाय और जरूरतमंदों का ख्याल रख कर उनकी मदद कर रहे हैं। रमजान में अल्लाह अपने बंदों के गुनाहों को माफ कर उन्हें जहन्नम से आजादी का परवाना अता करता है। माह-ए-रमजान की सुबह-शाम खैर व बरकत में गुजर रही है। अल्लाह के करम से बुधवार को 11वां रोजा मुकम्मल हो गया। तरावीह की नमाज़ का सिलसिला जारी है। कई मस्जिदों में तरावीह नमाज के दौरान एक कुरआन-ए-पाक मुकम्मल हो चुका है। पूरी दुनिया में अमन व अमान की दुआ मांगी जा रही है। रमज़ान का मुबारक महीना और फिजा में घुली रूहानियत से दुनिया सराबोर हो रही है, ऐसा लगता है कि चारों तरफ नूर की बारिश हो रही हो। साढ़े छह गली नखास में इत्र व टोपी की खूब बिक्री हो रही है। अख्तर आलम ने बताया कि रमजान में उनके यहां तमाम तरह के इत्र व अलग-अलग किस्म की टोपियां बिक रही हैं।

 

नेक राह पर चलने का मौका देता है रमजान : हाजी खुर्शीद आलम 

 

इलाहीबाग के समाजसेवी हाजी खुर्शीद आलम खान ने कहा कि आज हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जहां इंसानियत दम तोड़ती नजर आ रही है लोगों पर खुदगर्ज़ी हावी होती जा रही है ऐसे में रमजान खुद की खामियों को दूर कर नेक राह पर चलने का मौका देता है। रमजान में चाहे दीन हो या फिर दुनिया दोनों संवरती है। रोजेदार अपनी आदतों की विपरीत अल्लाह के हुक्म का पूरी तरह पाबंद हो जाता है। समय पर सहरी और इफ्तार करता है। अल्लाह को राजी करने के लिए रोजे की हालत में भूख और प्यास बर्दाश्त करना मुसलमानों को सब्र सिखाता है। इंसान जब भूखा प्यासा होता है तो उसका नफ़्स सुस्त और कमज़ोर होकर गुनाहों से बचा रहता है। उसे इबादत में लुत्फ आने लगता है। जब अल्लाह की बारगाह में इबादत कुबूल होती है तो बंदों की दुआ भी कुबूल होने लगती है। रोजे की हालत में अपने शरीर के हर हिस्से जैसे आँख, जुबान, कान और दिल की हिफाज़त करता है। रमजान बंदों को अच्छाई का अभ्यास कराता है, ताकि ग्यारह माह भी इसी तरह गुजर जाए।

 

अल्लाह को राज़ी करने का महीना है रमजान : मोहम्मद अहमद

 

गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर के इमाम मौलाना मोहम्मद अहमद ने कहा कि इस्लामी बारह महीनों में रमजान को सबसे ज़्यादा अहमियत हासिल है, क्योंकि अल्लाह ने अपने बंदों के लिए रमजान में बेपनाह बरकत और रहमत अता की है। रमजान हर ऐतबार से खास है कि बंदा परहेजगार बन जाए। तक़वा अख़्तियार कर ले, क्योंकि जब इंसान के अंदर डर पैदा हो जाता है तो वह हलाल व हराम की तमीज करने लगता है। रमजान में कोई शख्स किसी नेकी के साथ अल्लाह का करीबी बनना चाहे तो उसको इस कदर सवाब मिलता है गोया उसने फर्ज़ अदा किया। जिसने रमजान में फर्ज़ अदा किया उसको सवाब इस क़दर है गोया उसने रमजान के अलावा दूसरे महीनों में सत्तर फ़र्ज़ अदा किए। यह एक ऐसा महीना है कि जिसमें मोमिन का रिज्क बढ़ा दिया जाता है। जो इसमें किसी रोजेदार को इफ्तार कराए तो उसके गुनाह माफ कर दिए जाते हैं और उसकी गर्दन जहन्नम की आग से आज़ाद कर दी जाती है। यह महीना बंदे को तमाम बुराइयों से दूर रखकर अल्लाह के करीब होने का मौका देता है। इस माह में रोजा रखकर रोजेदार न केवल खाने-पीने कि चीजों से परहेज करते हैं बल्कि तमाम बुराइयों से भी परहेज कर अल्लाह की इबादत करते हैं।

 

नमाजे तरावीह औरतों के लिए भी लाजिम है : उलमा

 

रमजान हेल्पलाइन नंबर 9454674201 पर बुधवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। लोगों ने नमाज़, रोज़ा, जकात, फित्रा आदि के बारे में सवाल किए।

 

1. सवाल : क्या नमाजे तरावीह औरतों के लिए भी लाजिम है? 

जवाब : जी हां। नमाजे तरावीह औरतों के लिए भी सुन्नते मुअक्कदा (लाजिम) है। 

 

2. सवाल : रोजे की हालत में वुजू करते समय पानी हलक से नीचे उतर जाए तो? 

जवाब : अगर रोजादार होना याद था और ये गलती हुई तो रोजा टूट जाएगा। 

 

3. सवाल : जकात की रकम किस्तों में दे सकते हैं? 

जवाब : साल पूरा होने के बाद बिला उज्र ताखीर करना मकरूह है। हां अगर कोई शदीद मजबूरी हो कि रकम इकठ्ठी नहीं दे सकता तो किस्तों में भी देने से अदा हो जाएगी।

 

4. सवाल : क्या गरीबों पर भी सदका-ए-फित्र निकालना वाजिब है? 

जवाब : नहीं। सदका-ए-फित्र सिर्फ मालिके निसाब पर वाजिब है गरीबों पर सदका-ए-फित्र देना वाजिब नहीं। हां अगर दे दें तो सवाब पाएंगे।

  • Syed Farhan Ahmad

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