
गोरखपुर। इस्लामी माह शाबान का चांद गुरुवार को देश के कई इलाकों में नज़र आ गया। शुक्रवार 31 जनवरी को माह-ए-शाबान की पहली तारीख़ है। शब-ए-बरात गुरुवार 13 फरवरी को अकीदत व एहतराम के साथ मनाई जाएगी। इस्लामी कैलेंडर के माह शाबान की 15वीं तारीख़ की रात को शब-ए-बरात के नाम से जाना जाता है। हालांकि गोरखपुर में शाबान का चांद नज़र नहीं आया।
हाफिज रहमत अली निजामी ने बताया कि माह-ए-शाबान बहुत मुबारक महीना है। यह दीन-ए-इस्लाम का 8वां महीना है। इसके बाद माह-ए-रमजान आएगा। शब-ए-बरात के मौके पर महानगर की तमाम मस्जिदों, दरगाहों, कब्रिस्तानों की साफ-सफाई व सजावट होगी।
कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने बताया कि शब-ए-बरात का अर्थ होता है छुटकारे की रात या निजात की रात। इस्लाम धर्म में इस रात को महत्वपूर्ण माना जाता है। हदीस शरीफ़ में है कि इस रात में साल भर के होने वाले तमाम काम बांटे जाते हैं जैसे कौन पैदा होगा, कौन मरेगा, किसे कितनी रोजी मिलेगी आदि। सारी चीजें इसी रात को तक्सीम की जाती है। इस दिन शहर की छोटी से लेकर बड़ी मस्जिदों, घरों में लोग इबादत करते है। अल्लाह से दुआ मांगते हैं। कब्रिस्तानों में जाकर पूर्वजों की कब्रों पर फातिहा पढ़कर उनकी बख़्शिश की दुआ करते हैं। वलियों की दरगाहों पर जियारत के लिए जाते हैं। ग़रीबों को खाना खिलाया जाता है।
मौलाना महमूद रजा कादरी ने बताया कि इस दिन घरों में तमाम तरह का हलवा (सूजी, चने की दाल, गरी आदि) व लज़ीज़ पकवान पकाया जाता है। देर रात तक लोग नफ्ल नमाज व कुरआन पाक की तिलावत कर अपना मुकद्दर संवारने की दुआ मांगते हैं। अगले दिन रोज़ा रखकर इबादत करते हैं। इस रात के ठीक पन्द्रह या चौदह दिन बाद मुकद्दस रमज़ान माह आता है। उन्होंने नौजवानों से आतिशबाजी, बाइक स्टंट और खुराफाती बातों से बचने का आह्वान किया है। उन्होंने अपील की है कि जिनकी फ़र्ज़ नमाज़ें कज़ा (छूटी) हों वह नफ्ल नमाज़ों की जगह फ़र्ज़ कजा नमाज़ पढ़ें।