
गोरखपुर। रोजेदार बंदों ने माह-ए-रमजान का चौथा रोज़ा रखकर अल्लाह के हुक्म को पूरा किया। मस्जिद व घरों में रौनक है। चारों तरफ कुरआन-ए-पाक पढ़ा जा रहा है। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम व उनकी आल पर दरूदो सलाम का नज़राना पेश किया जा रहा है। मस्जिदों में बच्चे, नौजवान व बुजुर्ग नमाज़ अदा कर रहे हैं। वहीं घरों में औरतें इबादत, तिलावत के साथ खुद रोज़ा रखकर सहरी-इफ्तारी व खाना भी पका रही है और बाजार से खरीदारी भी कर रही है। दर्जियों की दुकानों पर लोग ईद का कपड़ा सिलवाने पहुंच रहे हैं। बाजार गुलज़ार है। सेवई, खजूर, टोपी, इस्लामी किताब, तस्बीह, इत्र की मांग बढ़ गई है। रमज़ान की सुबह-शाम नूरानी है। इफ्तार के समय का नज़ारा तो बहुत ही प्यारा है, जब एक दस्तरख्वान पर अमीर-गरीब एक होकर अल्लाह की हम्द बयां कर रोज़ा खोल रहे हैं। तरावीह की नमाज़ में भीड़ उमड़ रही है। तरावीह की नमाज़ में कहीं दस तो कहीं पंद्रह पारे मुकम्मल हो चुके हैं। रहमत के अशरे में चंद दिन गुजर चुके हैं। रहमत के अशरे के बाद मग़फिरत का अशरा शुरू होगा। रमज़ानुल मुबारक का हर पल हर लम्हा कीमती है।
माह-ए-रमज़ान में नाजिल हुआ क़ुरआन-ए-पाक : मौलाना जहांगीर
सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह के इमाम मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने बताया कि रमज़ान के इस मुकद्दस महीने में कुरआन-ए-पाक नाजिल (उतरा) हुआ। कुरआन-ए-पाक का पढ़ना देखना, छूना, सुनना सब इबादत में शामिल है। कुरआन-ए-पाक पूरी दुनिया के लिए हिदायत है। हमें कुरआन-ए-पाक के मुताबिक बताए उसूलों पर ज़िदंगी गुजारनी चाहिए। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कुरआन-ए-पाक 23 साल में नाजिल हुआ। कुरआन-ए-पाक पर अमल करके ही पूरी दुनिया में अमन और शांति कायम की जा सकती है। पूरा कुरआन-ए-पाक एक दफा इकट्ठा नहीं नाजिल हुआ बल्कि जरूरत के मुताबिक 23 वर्षों में थोड़ा-थोड़ा नाजिल हुआ। क़ुरआन-ए-पाक के किसी एक हर्फ लफ्ज़ या नुक्ते को बदलना मुमकिन नहीं। अगली किताबें नबियों को ही ज़बानी याद होती थी लेकिन कुरआन-ए-पाक का यह मोजजा है कि मुसलमानों का बच्चा-बच्चा उसको याद कर लेता है। माह-ए-रमजान में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर सहीफे 3 तारीख़ को उतारे गए। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम को जबूर 18 या 21 रमज़ान को मिली और हजरत मूसा अलैहिस्सलाम को तौरेत 6 रमज़ान को मिली। हजरत ईसा अलैहिस्सलाम को इंजील 12 रमज़ान को मिली।
मुसलमान भाईयों की जरूरतों का भी ख्याल रखिए : मौलाना फिरोज
मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर के इमाम मौलाना मो. फिरोज निजामी ने कहा कि रमज़ान का महीना हर साल रहमत, बरकत, और मग़फिरत का न मिटने वाला खज़ाना लेकर हमारे बीच आता है। इस महीने का एक खास मकसद यह है कि हम परहेजगार बन जाएं। इस मुबारक महीने की कुछ ऐसी अहम जिम्मेदारियां हैं जिसे पूरा करना हर खास व आम मुसलमान का दीनी फरीजा है। रोज़े की हालत में भूख व प्यास के एहसास के जरिया हमें अपने आस-पास के मुसलमान भाईयों की जरूरतों का भी ख्याल करना चाहिए। रोजा हमें यह तालीम देता है कि हम खुद ही लजीज खानों और ठंडे शर्बतों से पेट न भरें बल्कि अपने गरीब मुफलिस, भूखे और खाली हाथ मुसलमान भाईयों की जरूरतों का भी ख्याल रखते हुए उनकी हरसंभव मदद करें।
सेहत को नुकसान पहुंचने का खतरा हो तो रोजा छोड़ सकती है गर्भवती महिला : उलमा
रमज़ान हेल्प लाइन नंबर 9454674201 पर बुधवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। उलमा ने क़ुरआन व हदीस की रोशनी में जवाब दिया।
1. सवाल : हामिला (गर्भवती) महिला के लिए रोज़े का क्या हुक्म है?
जवाब : अगर हामिला (गर्भवती) महिला को रोज़ा रखने की वजह से खुद की या बच्चे की सेहत को नुकसान पहुंचने का खतरा हो तो रोज़ा छोड़ने की इजाज़त है। हां बाद में इनकी क़ज़ा करना ज़रूरी है।
2. सवाल : रोजे की हालत में आंख में दवा डालना कैसा?
जवाब : रोज़े की हालत में आंख में दवा डालना जायज़ है, इससे रोजा नहीं टूटेगा, अगरचे उसका जायका हलक में महसूस हो।
3. सवाल : रोज़े की हालत में जख्म पर मरहम या दवा लगा सकते हैं?
जवाब : हां। लगा सकते हैं।
4. सवाल : इंजेक्शन के ज़रिए खून निकाला तो वुजू टूट जाएगा?
जवाब : हां। वुजू टूट जाएगा।