माह-ए-रमजान का फैजान जारी, बीता 14वां रोजा

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गोरखपुर। माह-ए-रमजान का फैजान जारी है। शनिवार को 14वां रोजा अल्लाह को राजी करने में बीता। रमजान के रोजे अल्लाह के जिक्र व शुक्र में गुजर रहे हैं। इस वक्त मस्जिद के इमाम व मुअज्जिन की जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं। पांच वक्त की फर्ज़ नमाज, वित्र की नमाज, तरावीह की नमाज, जुमा की नमाज, सहरी में जगाना, इफ्तार का वक्त बताना, मस्जिद की सभी जिम्मेदारियां मस्जिद के इमाम व मुअज्जिन की है। मस्जिदों में नमाजियों की तादाद भी बढ़ गई है तो वुजू के पानी से लेकर साफ-सफाई की निगरानी, शाम को विभिन्न घरों से आई इफ्तारी को इक्ट्ठा करवाना और बंटवाना भी इमाम व मुअज्जिन के ही जिम्मे है। जो वह रमजान में बाखूबी निभा रहे हैं।

 

शनिवार को तरावीह नमाज़ के दौरान शहर की आधा दर्जन से अधिक मस्जिदों में एक कुरआन-ए-पाक मुकम्मल हो गया। नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर, मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर, बिलाल मस्जिद इमामबाड़ा अलहदादपुर, मियां साहब मस्जिद जुबली फार्म नंदानगर, मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में तरावीह नमाज के दौरान एक कुरआन-ए-पाक मुकम्मल हो गया। हाफिज-ए-कुरआन को तोहफों से नवाजा गया।

 

रमजान में करें नेक काम, गरीबों की करें मदद : एडवोकेट काशिफ

 

इस्लामी मामलों के जानकार एडवोकेट मो. काशिफ एम खान ने बताया कि कुरआन में सिर्फ रमजान शरीफ ही का नाम लिया गया और इसी के फजाइल बयान हुए हैं। रमजान में पांच इबादत खुसूसी होती है रोजा, तरावीह, तिलावते कुरआन, एतिकाफ और शबे कद्र में जागकर इबादत करना। तो जो कोई सच्चे दिल से ये पांच इबादत करे वह अल्लाह का ईनाम पाने का हकदार हो जाता है। रमजानुल मुबारक के स्वागत के लिए सारे साल जन्नत को सजाया जाता है। रमजान में शैतान कैद कर दिया जाता है और जहन्नम के दरवाजे बंद हो जाते हैं। जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। इसी लिए रमजान के दिनों में नेकियों की अधिकता और गुनाहों की कमी होती है। रमजान में खाने पीने का हिसाब नहीं है। हमें चाहिए कि हम रमजान में नेक काम करें और गुनाहों से बचें। गरीबों, मोहताजों की मदद करें।

 

रमजान में इबादत करके मुकद्दर संवारें : नेहाल अहमद 

 

इस्लामी मामलों के जानकार नेहाल अहमद ने बताया कि माह-ए-रमजान में हर दिन और हर वक्त इबादत होती है। रोजा इबादत, इफ्तार इबादत, इफ्तार के बाद तरावीह का इंतजार इबादत, तरावीह पढ़कर सहरी के इंतजार में सोना इबादत, फिर सहरी खाना भी इबादत। रमजान एक भट्टी की तरह है जैसे कि भट्टी गंदे लोहे को साफ और साफ लोहे को मशीन की पुर्जां बनाकर कीमती कर देती है और सोने को जेवर बनाकर कीमती कर देती है व सोने को जेवर बनाकर इस्तेमाल के लायक कर देती है ऐसे ही माह-ए-रमजान गुनहगारों को पाक करता है और नेक लोगों के दर्जे बढ़ाता है। हमें चाहिए कि इबादत करके अपना मुकद्दर संवारें और गुनाहों की माफी मांगें।

 

जकात की अदायगी में देर करना जायज नहीं : उलमा 

 

रमजान हेल्पलाइन नंबर 9454674201 पर शनिवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा।

 

1. सवाल : जकात की अदायगी में ताखीर (देर) करना कैसा?

जवाब : निसाब के माल पर साल पूरा होने के बाद बिला उज्र जकात की अदायगी में ताखीर करना जायज नहीं, गुनाह है। 

 

2. सवाल : क्या सदका-ए-फित्र सिर्फ रोजेदार पर वाजिब है? जिसने रोजा न रखा वो सदका-ए फित्र नहीं देगा क्या? 

जवाब : नहीं सदका-ए-फित्र हर मुसलमान मालिके निसाब पर वाजिब है, अगरचे उसने रोजे न रखे हों। 

 

3. सवाल : रोजे की हालत में ऐसा जख्म हो जाए कि टाका लगवाना पड़े तो? 

जवाब : टाका लगवाने में कोई हर्ज नहीं। उससे रोजा नहीं टूटेगा। 

 

4. सवाल : क्या तरावीह की नमाज पूरे रमजान पढ़ना जरूरी है? 

जवाब : जी हां। पूरे रमजान तरावीह की नमाज पढ़ना जरूरी है सिर्फ खत्मे क़ुरआन तक पढ़ना फिर छोड़ देना गुनाह है।u

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