रोजा-नमाज के जरिए अल्लाह को राजी करने में जुटे रोजेदार

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गोरखपुर। रोजेदार रोजा-नमाज के जरिए अल्लाह को राजी करने में जुटे हुए हैं। माह-ए-रमजान का सातवां रोजा रोजेदारों ने सुब्हानअल्लाह, अलहम्दुलिल्लाह, अल्लाहु अकबर का विर्द करते हुए गुजारा। जब दुआ में हाथ उठा तो दिल से यही सदा निकली ‘या इलाही हर जगह तेरी अता का साथ हो, जब पड़े मुश्किल शहे मुश्किल कुशा का साथ हो’। तरावीह की नमाज जारी है। बाजार में चहल-पहल है। दिन व रात खुशगवार है। घर व मस्जिद में कुरआन-ए-पाक व दरूदो सलाम पढ़ा जा रहा है। घरों में महिलाओं की जिम्मेदारी बढ़ गई है। इफ्तार व सहरी में दस्तरख्वान बेहतरीन खानों से सजा नज़र आ रहा है। रहमत का अशरा जारी है। दस रोजा पूरा होने के बाद मगफिरत का अशरा शुरु होगा। 

 

रोजा रखने से इंसान तंदुरुस्त हो जाता है : हाफिज अयाज

 

हाफिज अयाज अहमद ने बताया कि रोजा रखने से इंसान तंदुरुस्त हो जाता है। हदीस शरीफ़ में है रोजा रखो सेहतयाब हो जाओगे। रमजान के पवित्र माह में रोजा रखने से पाचन क्रिया और अमाशय को आराम मिलता है। सालों-साल लगातार काम करने के कष्‍ट से शरीर की इन मशीनरियों को कुछ दिनों तक आराम मिलता है। इस दौरान आमाशय शरीर के भीतर फालतू चीजों को गला देता है। यह लंबे समय तक रोगों से बचे रहने का एक कारगर नुस्खा है। उन्होंने बताया कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खजूर बेहद पसंद थी। खजूर में शिफा है। खजूर से रोजा खोलना पैग़ंबरे इस्लाम की सुन्नत है। खजूर जन्नत का फल है और इसमें जहर से भी शिफा है। खजूर खाने से न सिर्फ थकावट दूर होती है बल्कि गुर्दे की ताकत भी बढ़ती है।

 

रमज़ान में की गई इबादत बहुत असरदार : मो. फैजान 

 

जिला अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में कार्यरत मोहम्मद फैजान ने बताया कि इस्लाम धर्म में अक्सर आमाल किसी न किसी रूह परवर वाक्या की याद ताजा करता है। रोजा पिछली उम्मतों में भी था। मगर उसकी सूरत हमारे रोजों से जुदा थी। विभिन्न रवायतों से पता चलता है कि हजरत आदम अलैहिस्सलाम हर माह 13, 14, 15 को रोजा रखते थे। हजरत नूह अलैहिस्सलाम हमेशा रोजेदार रहते थे। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम एक दिन छोड़कर एक रोजा रखते थे। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम एक दिन रोजा रखते और दो दिन न रखते थे। रमजान के महीने में की गई अल्लाह की इबादत बहुत असरदार होती है। इसमें खान-पान सहित अन्य दुनियादारी की आदतों पर आदमी संयम करता है। आदमी अपने शरीर को वश में रखता है साथ ही तरावीह और नमाज़ पढ़ने से बार-बार अल्लाह का जिक्र होता रहता है जिसके द्वारा इंसान की रूह पाक-साफ होती है।

 

माहवारी आने से रोजा टूट जाएगा : उलमा 

 

रमज़ान हेल्पलाइन नंबर 9454674201 पर शनिवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। उलमा ने क़ुरआन व हदीस की रोशनी में जवाब दिया।

 

1. सवाल : रोज़े की हालत में अगर हैज (माहवारी) आ जाए तो उसके लिए क्या हुक्म है? 

जवाब : रोजे की हालत में अगर मगरिब से पहले पहले किसी भी समय महिला को हैज आ जाए तो उसकी वजह से रोजा फासिद (टूट) हो जाएगा और पाक होने के बाद उस रोजे की कजा रखना जरूरी होगा।

 

2. सवाल : सदका-ए-फित्र कब निकालना चाहिए? 

जवाब : ईद के दिन सुबह सादिक तुलू होते ही सदका फित्र वाजिब हो जाता है, लेकिन मुमकिन हो तो ईद से कुछ दिन पहले रमजान में ही सदका फित्र निकाल दें ताकि जरूरतमंद हजरात इसका इस्तेमाल कर ईद की खुशियों में हमारे साथ शरीक हो सकें।

  • Syed Farhan Ahmad

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