वक्फ संशोधन विधेयक : मुस्लिम समुदाय के विरोध का स्वर

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वक्फ संशोधन विधेयक : मुस्लिम समुदाय के विरोध का स्वर

केंद्र सरकार द्वारा लाए गए वक्फ संशोधन विधेयक को मुस्लिम समुदाय में बड़े पैमाने पर विरोध का सामना करना पड़ रहा है। उनका मानना है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप और धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा करता है। कई प्रमुख मुस्लिम नेता और धर्मगुरु इसे इस्लामी कानूनों के खिलाफ मानते हैं। उनका मानना है कि वक्फ संपत्तियों का प्रशासन पूरी तरह से धार्मिक स्वायत्तता के तहत होना चाहिए। सरकार को इसमें गैर ज़रूरी हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।

केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत इस विधेयक को धार्मिक मामलों में गैर ज़रूरी सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है। इस विधेयक के कई प्रावधान वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन में बदलाव लाने के उद्देश्य से पेश किए गए हैं। लेकिन यह मुस्लिम धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। उनका मानना है कि यह विधेयक धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ संपत्तियों की स्वायत्तता पर खतरा डाल सकता है।

All India Muslim Personal Law Board द्वारा विरोध दर्ज करने के लिए जारी पत्र

विधेयक में वक्फ बोर्ड को मिलने वाले वार्षिक वित्तीय योगदान को 7% से घटाकर 5% कर दिया गया है। यह कटौती वक्फ बोर्ड की आर्थिक स्थिति को कमज़ोर कर सकती है। जिससे वक्फ संपत्तियों का रखरखाव और विकास प्रभावित होगा। वक्फ बोर्ड की वित्तीय क्षमता में इस कटौती से मुस्लिम समुदाय को संपत्तियों के प्रबंधन में कठिनाई हो सकती है।

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 मुस्लिम समुदाय में व्यापक असंतोष और विरोध का कारण बन रहा है। मुस्लिम धर्मगुरु और बुद्धिजीवी इसे अपने धार्मिक मामलों में गैर ज़रूरी सरकारी हस्तक्षेप और वक्फ संपत्तियों की स्वायत्तता पर हमला मानते हैं। उनके अनुसार, वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन पूरी तरह से इस्लामी कानूनों के अनुसार होना चाहिए। सरकार को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। उनका कहना है कि सरकार इसे वापस ले। मुस्लिम समाज की धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

मजहबी मामलों में हस्तक्षेप और इस्लामिक कानूनों का उल्लंघन

मदरसा अंजुमन इस्लामिया खूनीपुर के शिक्षक डॉ.‌ अज़ीम फारुक़ी ने इस विधेयक के खिलाफ खुलकर अपना विरोध जताया है। उन्होंने इसे धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप बताते हुए कहा

"हमें वक्फ बिल मंजूर नहीं है। यह हमारा मज़हबी मामला है। सिर्फ रोज़ा, नमाज़, ज़कात, हज ही इबादत नहीं है बल्कि यह भी दीनी मामला है और इसमें कोई भी गैर शरई बात हमें मंज़ूर नहीं है। दीन में सिर्फ वही बातें मानी जाएंगी जो अल्लाह का हुक्म और रसूलुल्लाह का तरीका होगा इसके अलावा कुछ नहीं।"
डॉ.‌ अज़ीम फारुक़ी
शिक्षक
मदरसा अंजुमन इस्लामिया खूनीपुर

इस बयान से स्पष्ट है कि मुस्लिम समाज इस विधेयक को अपने धार्मिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप मान रहा है। वक्फ संपत्तियां धार्मिक उद्देश्यों के लिए होती हैं और उनका प्रबंधन इस्लामी कानूनों के अनुसार होना चाहिए।

वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और प्रशासनिक स्वतंत्रता पर खतरा

वक्फ संपत्तियां, इस्लाम में एक धार्मिक संपत्ति के रूप में जानी जाती हैं। जो अल्लाह की मिल्कियत मानी जाती है। इन संपत्तियों का उपयोग वक्फ करने वाले की नीयत के मुताबिक सिर्फ धार्मिक और समाजिक भलाई के कार्यों में होना चाहिए। मुफ़्ती-ए-शहर, गोरखपुर मुफ्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी ने वक्फ संपत्तियों की महत्ता और उनके धार्मिक उद्देश्यों पर ज़ोर देते हुए कहा

"वक्फ की मिल्कियत खास मिल्कियत-ए-इलाही होती है। वक्फ की नीयत के एतबार से ही उसका इस्तेमाल होना चाहिए। अपने हों या गैर, किसी को उसमें खुर्द बुर्द का हक़ हासिल नहीं है। हुकूमत को मुसलमानों का हक़ मानते हुए इस बिल को वापस लेना चाहिए। साथ ही हुकूमते हिंद से गुजारिश है कि जिन लोगों ने वक्फ की संपत्ति पर नाजायज़ कब्ज़ा किया है उन पर कार्रवाई की जाए।"
अख़्तर हुसैन मन्नानी
मुफ़्ती-ए-शहर, गोरखपुर

यह बयान इस बात को इंगित करता है कि वक्फ संपत्तियां किसी भी प्रकार की राजनीतिक या प्रशासनिक हस्तक्षेप से मुक्त होनी चाहिए। अगर वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग होता है तो सरकार को उस पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए न कि नए प्रावधान लाकर उसकी स्वायत्तता को प्रभावित करने की कोशिश।

मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी का विरोध

मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने वक्फ संशोधन बिल को एक संगठित साजिश करार दिया, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समाज की धार्मिक संपत्तियों को लूटना है। उन्होंने कहा

"सरकार का वक्फ संशोधन बिल मुसलमानों के पूर्वजों द्वारा दी गई सम्पत्ति को लूटने की एक संगठित साजिश हो सकती है। सरकार द्वारा लाए गए वक्फ संशोधन बिल 2024 वक्फ की सुरक्षा, इसके उद्देश्यों और प्रशासनिक ढांचे को गंभीर नुकसान पहुँचा सकता है। इस बिल के खिलाफ अफसोस जाहिर करते हुए, मैं भारतीय मुस्लिम समाज से अपील करता हूँ कि वे जेपीसी (जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी) को बड़ी संख्या में अपनी राय भेजें और इस बिल के प्रति अपना विरोध दर्ज करें।"
मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी
शिक्षक
मदरसा ज़िया उल उलूम गोरखनाथ गोरखपुर

मौलाना अज़ीज़ी के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि मुस्लिम समाज इस विधेयक को अपनी धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ संपत्तियों पर हमला मान रहा है। वह चाहते हैं कि मुस्लिम समुदाय इस विधेयक का जोरदार विरोध करे और सरकार को बताए कि मौजूदा वक्फ कानून पर्याप्त है और इसमें किसी संशोधन की अभी जरूरत नहीं है। इनके अलावा मुस्लिम समुदाय के विभिन्न बुद्धजीवियों की मानें तो वक्फ संशोधन विधेयक में कई एक कमियां हैं जो इस प्रकार देखी जा रही हैं।

गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर आपत्ति

विधेयक में वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है। जिसका मुस्लिम समुदाय ने कड़ा विरोध किया है। वक्फ संपत्तियां धार्मिक संपत्तियां हैं, जिनका प्रबंधन पूरी तरह से मुस्लिम समुदाय के हाथों में ही होना चाहिए। गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति से धार्मिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप की आशंका उत्पन्न हो सकती है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है।

वक्फ विवादों में कानूनी जटिलता

विधेयक में वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों को ट्रिब्यूनल के बजाय उच्च न्यायालय में अपील करने का प्रावधान किया गया है। यह कदम कानूनी प्रक्रियाओं को जटिल और महंगा बना सकता है। खासकर छोटे वक्फ ट्रस्टों के लिए उच्च न्यायालय में अपील करने से न्याय प्राप्त करना मुश्किल हो जाएगा और इससे वक्फ प्रबंधकों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

वक्फ संपत्तियों का केंद्रीयकरण

विधेयक के तहत वक्फ संपत्तियों को एक केंद्रीय पोर्टल पर पंजीकृत करने का प्रावधान किया गया है। इस प्रावधान का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता बढ़ाना बताया जा रहा है, लेकिन मुस्लिम समुदाय इसे अपनी संपत्तियों पर सरकारी निगरानी का ज़रिया मानता है। इससे सरकार की ओर से वक्फ संपत्तियों पर अनावश्यक नियंत्रण बढ़ सकता है।

सामुदायिक विभाजन और मुस्लिम एकता पर खतरा

विधेयक में बोहरा, आगाखानी और अन्य मुस्लिम संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड बनाने का प्रावधान है। यह प्रावधान मुस्लिम समुदाय के भीतर विभाजन का कारण बन सकता है, जिससे मुस्लिम एकता प्रभावित हो सकती है। मुस्लिम समुदाय में विभिन्न संप्रदायों के लिए अलग बोर्ड बनाने से आपसी टकराव की स्थिति उत्पन्न हो होगी और वक्फ बोर्ड का केंद्रीय ढांचा कमजोर हो जाएगा।

  • Ahmad Atif

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