
जीवन में नफ़रत नहीं, मोहब्बत को अपनाकर बनाएं बेहतर समाज

गोरखपुर। गुरुवार को जाफरा बाज़ार स्थित सब्ज़पोश हाउस के मैदान में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक आयोजन, मोहसिन-ए-आज़म कांफ्रेंस संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में धर्मगुरु, शिक्षक और लेखक प्रोफेसर मोहम्मद अफ़रोज़ क़ादरी और वरिष्ठ मुफ़्ती व लेखक अब्दुल हकीम नूरी को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए 'सब्ज़पोश अवॉर्ड' से नवाज़ा गया। इस सम्मान ने न केवल उनके योगदान को सराहा बल्कि समाज को यह संदेश दिया कि धार्मिक शिक्षा और अच्छे कार्यों का महत्व क्या है।
इसके अलावा, तंज़ीमुल मकातिब व मदारिस संस्था को भी इस्लामी शिक्षा के क्षेत्र में उनके अहम योगदान के लिए सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में शामिल बच्चों के उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखकर उन्हें भी पुरस्कृत किया गया। हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने अपने जोशीले अंदाज़ में सभी मेहमानों का स्वागत किया और यह सुनिश्चित किया कि सभी उपस्थित लोगों को इस कार्यक्रम से प्रेरणा मिले

अल्लाह और रसूल की मुहब्बत ही है असली ताकत
प्रोफेसर मोहम्मद अफ़रोज़ क़ादरी ने अपने भाषण में बेहद प्रभावशाली बातें कहीं। उन्होंने बताया कि असली जीवन वही है जो अल्लाह और रसूल की मुहब्बत में जिया जाए। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि नफ़रत समाज को तोड़ने का काम करती है, जबकि मोहब्बत, विशेष रूप से अल्लाह और रसूल की, सभ्य समाज का निर्माण करती है। उन्होंने यह भी कहा, "नफ़रत आग की तरह है, जबकि अल्लाह और रसूल की मोहब्बत उस आग को बुझाने का काम करती है।" उनकी यह बात लोगों के दिलों को छू गई और उन्हें आत्म-चिंतन की दिशा में ले गई कि क्या हम इस्लाम के असली संदेश को अपने जीवन में अपना रहे हैं?
आज के समय में, प्रोफेसर क़ादरी ने लोगों से अपील की कि अगर हम हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शिक्षाओं पर अमल करें, तो हम न केवल अपने देश में बल्कि पूरे विश्व में शांति और प्रेम स्थापित कर सकते हैं। यह सिर्फ़ एक विचार नहीं है, बल्कि इसे अमल में लाने की ज़रूरत है। समाज के हर व्यक्ति को इस पर ध्यान देना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि कैसे हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में मोहब्बत को जगह दे सकते हैं।

समाज में संबंधों को मज़बूत करें और ज़िम्मेदारियों को समझें
कार्यक्रम के अध्यक्ष, मुफ़्ती अब्दुल हकीम नूरी ने समाज को यह संदेश दिया कि अगर हम इस्लाम की शिक्षाओं का पालन नहीं कर रहे हैं, तो हमारे मुहब्बत के दावे बेबुनियाद हैं। उन्होंने कहा, "हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम शिक्षा पर ध्यान दें, आपसी संबंधों को मज़बूत करें, और माता-पिता, रिश्तेदार, भाई-बहनों व पड़ोसियों के अधिकारों का ख्याल रखें।" यह बातें सुनकर हर व्यक्ति को यह एहसास हुआ कि एक बेहतर समाज बनाने के लिए व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी कितनी महत्वपूर्ण है। मुफ़्ती नूरी ने लोगों को यह भी याद दिलाया कि स्वच्छता और तालीम, दोनों ही एक ज़िम्मेदार मुस्लिम की पहचान हैं।
