ONE NATION, ONE ELECTION : एक देश, एक चुनाव की सिफारिश को मिली मंजूरी!

ONE NATION, ONE ELECTION : एक देश, एक चुनाव की सिफारिश को मिली मंजूरी!
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क्या देश के लिए संविधान में संशोधन जरूरी ?

ONE NATION, ONE ELECTION : एक देश, एक चुनाव की सिफारिश को मिली मंजूरी!

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के सौ दिन पूरे होने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में कई अहम फ़ैसले लिए गए हैं।

पीएम मोदी की केंद्रीय कैबिनेट ने 'एक देश, एक चुनाव' के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। अब संसद के विंटर सेशन में इसे लेकर विधेयक पेश किया जाएगा और इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाएगा। देश में 1951 से 1967 तक चुनाव एक साथ होते थे। वन नेशन, वन इलेक्शन में जो हाई लेवल कमेटी बनाई गई है‌उसकी सिफ़ारिशों को आज केंद्रीय कैबिनेट ने स्वीकार कर लिया है। पुरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव होना ही इस प्रस्ताव का मूल उद्देश्य है

देश में बार-बार चुनाव की वजह से जो खर्च होता है उसे कम करने और लॉ एंड ऑर्डर में परेशानी आती है वह न आए‌ और भारत का विकास जल्द हो जिसके लिए यह नियम 'एक देश, एक चुनाव' लागू किया जाने वाला है ।

47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के साथ साझा किए थे। जिनमें से 32 राजनीतिक दल एक देश एक चुनाव’के समर्थन में थे। जिसमे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और चीफ़ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे। इसके अलावा विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर क़ानून राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और डॉ. नितेन चंद्रा विचार समिति में शामिल थे। यह कोई आज की बात नही हैं बल्कि इसकी कोशिश 1983 से ही शुरू हुई, तब इंदिरा गांधी ने इसे अस्वीकार कर दिया था।

कैबिनेट के इस फैसले के बाद राजनीतिक पार्टियों में गहमागहमी देखी जा रही है। विपक्षी दल एक देश, एक चुनाव को सिरे से खारिज किया है, वहीं पर बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने इसका स्वागत किया है। कुछ एक्सपर्ट भी इस विचार से सहमत नहीं हैं।

गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कहा कि "एक देश ,एक चुनाव" अगले पांच साल के अंदर लागू किया जाएगा। प्रधानमंत्री के इस महत्वपूर्ण विचार पर उन्होंने देश की जनता को भरोसा दिलाया है कि 2029 से पहले यह योजना लागू कर दी जाएगी।

एक देश एक चुनाव का विरोध करने वालों की दलील है कि "इसे अपनाना संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा। यह अलोकतांत्रिक, संघीय ढांचे के विपरीत, क्षेत्रीय दलों को अलग-अलग करने वाला और राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ाने वाला होगा।"

देश के तमाम वरिष्ठ लोगो का कहना है कि एक देश के लिए उसके संविधान की संरचना का उल्लघंन है, देश में पहले भी एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव दिया गया था । लेकिन बाद में उसे खारिज करना पड़ा। कांग्रेस का कहना है कि वह 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के प्रस्ताव पर काम नही करना चाहती और इसका पूरी तरह से विरोध करती है। कांग्रेस ने कहा कि चुनाव कराने का ख़र्च बेहद ज़्यादा होता है। ऐसे में सरकार चुनने के लिए संसदीय प्रणाली को अपनाकर किसी देश में एक साथ चुनाव कराने की योजना नहीं है ।

वहीं पर आम आदमी पार्टी ने भी एक देश एक चुनाव को नकारा है। उन्होंने कहा कि यह संविधान की बुनियादी संरचना के ख़िलाफ़ है। इसी बीच सीपीएम ने भी इसको ख़ारिज किया है। पार्टी ने ज़ोर देते हुए कहा था कि एकसाथ चुनाव कराने का विचार मूलभूत रूप से लोकतंत्र विरोधी है और संविधान से मिले संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली की जड़ पर हमला करता है। इस सिलसिले में बहुजन समाज पार्टी ने हाई लेवल कमेटी के आगे पूरी तरह से एक देश एक चुनाव का विरोध नहीं किया , लेकिन उसने इसको लेकर चिंता जताई। एक साथ चुनाव कराने में सबसे ज्यादा फ़ायदा बीजेपी और कांग्रेस जैसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों को होगा। और छोटी पार्टियों के लिए एक साथ कई राज्यों में प्रचार प्रसार करना कठिन हो सकता है।

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