माह-ए-रमजान व ईद को लेकर तुर्कमानपुर में सजी महिलाओं की महफिल

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रोजा रखने से गुनाह माफ होते हैं : मुफ्तिया ताबिंदा

गोरखपुर। ‘माह-ए-रमजान व ईद में कैसे करें इबादत’ विषय पर रविवार को मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमाम चौक तुर्कमानपुर में महिलाओं की महफिल हुई। कुरआन-ए-पाक की तिलावत से महफिल का आगाज हुआ। मकतब की छात्राओं ने नात व मनकबत पेश की। मुख्य अतिथि मुफ्तिया ताबिंदा खानम अमजदी ने कहा कि रमजान की फजीलतों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है, मगर उसका बुनियादी सबक यह है कि हम सभी उस दर्द को समझें जिससे दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रोजाना दो-चार होता है। जब हमें खुद भूख लगती है तभी हमें गरीबों की भूख का एहसास हो सकता है। रमजान के महीने में ही कुरआन-ए-पाक दुनिया में उतरा था, लिहाजा इस महीने में तरावीह के रूप में कुरआन-ए-पाक सुनना बेहद सवाब का काम है। रमजान का महीना हममें इतना तकवा (परहेजगारी) पैदा कर सकता है कि सिर्फ रमजान ही में नहीं बल्कि उसके बाद भी ग्यारह महीनों की ज़िन्दगी भी सही राह पर चल सके। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मशहूर फरमान है कि जिसने ईमान के साथ सवाब की नियत से यानी खालिस अल्लाह की खुशनूदी हासिल करने के लिए रोजा रखा उसके पिछले तमाम गुनाह माफ फरमा दिए जाते हैं।

रमजान में अल्लाह की रहमत रूपी बारिश इंसान को पाक-साफ कर देती है : शिफा खातून 

महफिल का संचालन करते हुए मकतब की छात्रा शिफा खातून ने कहा कि रमजान के महीने में अल्लाह की रहमत रूपी बारिश इंसान को पाक-साफ कर देती है। रमजान के पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर खूब रहमतों की बारिश करता है। रमजान में 30 दिन तक इस बात की मश्क (अभ्यास) कराई जाती है कि जो काम तुम्हारे लिए जायज है, उसके लिए भी तुम खुद को रोक लो। तब इंसान यह महसूस करने लगता है कि जब मैं हलाल कमाई से हासिल किया गया खाना और पानी इस्तेमाल करने से खुद को रोक सकता हूं तो गलत काम करने से क्यों नहीं रोक सकता हूं। इंसान अक्सर यह सोचता है कि वह चाहकर भी खुद को गुनाह करने से रोक नहीं पाता, मगर यह उसकी गलतफहमी है। रमजान उसे इसका एहसास कराता है।

अल्लाह की इबादत में गुजरा 15वां रोजा 

मग़फिरत यानी गुनाहों से माफ़ी का अशरा चल रहा है। अल्लाह के बंदे इबादत कर रो-रो कर अपने गुनाहों की माफ़ी मांग रहे हैं। अल्लाह के फजल व करम से 15वां रोजा खैर के साथ गुजर गया। अल्लाह के बंदे सदका, जकात व खैरात जरुरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं। मस्जिदों में नमाजियों की कतारें नजर आ रही हैं। घरों में भी इबादत का दौर जारी है। मुकद्दस कुरआन-ए-पाक की तिलावत हो रही है। सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा बाजार में तरावीह नमाज के दौरान एक कुरआन-ए-पाक हाफिज रहमत अली निजामी ने मुकम्मल कर लिया। उन्हें तोहफों से नवाजा गया। 

एनीमा लगवाने से रोजा टूट जाता है : उलमा

रमज़ान हेल्पलाइन नंबर 9454674201 पर रविवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। 

1. सवाल : नमाज़े इशा से पहले तरावीह पढ़ना कैसा? 

जवाब : इशा की फर्ज़ नमाज पढ़ने के बाद ही तरावीह का वक्त होता है बगैर फर्ज़-ए-इशा पढ़े तरावीह पढ़ना दुरुस्त नहीं अगर किसी शख़्स की नमाजे इशा छूट गई हो तो पहले इशा की फर्ज़ नमाज पढ़ ले फिर तरावीह में शरीक हो और आखिर में तरावीह की जो रकातें छूटी हों उन्हें खुद से पढ़ कर बीस रकातें पूरा कर ले। 

2. सवाल : क्या एनीमा लगवाने से रोजा टूट जाता है? 

जवाब : हां। एनीमा लगवाने से रोजा टूट जाता है। 

3. सवाल : क्या रोजे की हालत में आंखों में लेंस लगवा सकते हैं? 

जवाब : हां लगवा सकते हैं इससे रोजे पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

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