शबे कद्र में खूब हुई इबादत व कुरआन-ए-पाक की तिलावत

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गोरखपुर। करीब 13 घंटा 43 मिनट का 22वां रोजा अल्लाह की इबादत व कुरआन की तिलावत में बीता। माह-ए-रमजान का अंतिम अशरा ‘जहन्नम से आजादी’ का जारी है। मस्जिद व घरों में इबादत हो रही है। रविवार को शबे कद्र की दूसरी ताक रात में खूब इबादत हुई। अल्लाह के बंदों ने इबादत कर गुनाहों से माफी मांगी। बाजार में ईद की खरीदारी जोरों पर है। बाजार में खरीदारों की भीड़ उमड़ रही है। खासकर रेती, शाह मारुफ, उर्दू बाजार, घंटाघर, जाफरा बाजार, गोरखनाथ में चहल पहल ज्यादा है।

 

एतिकाफ करने में बड़ों संग युवा भी आगे

 

माह-ए-रमजान का अंतिम अशरा चल रहा है। मस्जिदों में बड़ों से लेकर युवा भी दस दिनों के एतिकाफ में मग्न हैं। अल्लाह की इबादत कर अकीदत का इजहार कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही शानदार नजारा जमुनहिया बाग गोरखनाथ स्थित फिरदौस जामा मस्जिद में भी देखने को मिल रहा है। यहां नौ युवा एतिकाफ में बैठे हैं। जिनकी उम्र महज 12 से 18 के बीच है। एतिकाफ में बैठे बच्चों में जीशान खान (18), आमिर अली (14), फरहान (14), अहमद (13), उमर हसन (13), आमान (12), सुफियान (12), बेलालुद्दीन (13), उजैर अहमद (17) आदि शामिल हैं। इबादत के जज्बे से लबरेज युवा कहते हैं कि दुनिया से ताल्लुक तोड़कर अल्लाह की याद में लगे रहने का अपनी ही लुत्फ है। मस्जिद के सेकेट्री आसिफ महमूद युवाओं का हौसला बढ़ा रहे हैं। वहीं शहर की अन्य मस्जिदों में भी बड़ों के साथ युवा एतिकाफ कर खूब नेकी कमा रहे हैं।

 

अल्लाह के हुक्म के मुताबिक ज़िंदगी गुजारना इबादत : रेयाज 

 

तुर्कमानपुर के समाजसेवी रेयाज अहमद राईनी ने कहा कि अल्लाह के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुनिया को एक अल्लाह की इबादत का संदेश देकर जहालत को दूर करने का पैगाम दिया। अल्लाह की इबादत की तीसरी कड़ी रोजा बना। दीन-ए-इस्लाम में होश संभालने से लेकर मरते दम तक अल्लाह के कानून और उसके हुक्मों के मुताबिक ज़िंदगी गुजारना इबादत है। रोजा अल्लाह के आदेश का पालन करने और अनुशासित जीवन जीने के लिए प्रशिक्षित करता है।

 

शबे कद्र बड़ी खैर व बरकत वाली रात : कारी फिरोज 

 

दरोगा साहब मस्जिद अफगान हाता के इमाम कारी फिरोज आलम कादरी ने कहा कि रमजान में प्रत्येक इंसान हर तरह की बुराइयों व गुनाहों से खुद को बचाता है। रमजान की रातों में एक रात शबे कद्र कहलाती है। यह रात बड़ी खैर व बरकत वाली है। क़ुरआन में इसे हजारों महीनों से अफजल बताया गया है। यह वह पाक रात है, जिसमें हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम फरिश्तों की एक बड़ी जमात लेकर जमीन पर तशरीफ लाते हैं। अल्लाह के हुक्म से पूरी दुनिया का चक्कर लगाते हैं। इबादत में रात गुजारने वालों के लिए दुआएं करते हैं और मुबारकबादी पेश करते हैं। पूरी रात चारों तरफ सलामती ही सलामती रहती है। फज्र का वक्त होते-होते यह नूरी काफिला वापस चला जाता है। रमज़ान के आखिरी अशरा की 21, 23, 25, 27 व 29वीं रातों को शबे कद्र की रात बताया गया है।

 

बूढ़ा व्यक्ति रोजा रखने के बजाए उनका फिदया दे सकता है : उलमा 

 

रमजान हेल्पलाइन नंबर 9454674201 पर रविवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा।

 

1. सवाल : क्या बूढ़ा व्यक्ति रोजा रखने के बजाए उनका फिदया दे सकता है?

जवाब : अगर बूढ़ा व्यक्ति इतना कमजोर है कि न अभी रोजा रख सकता है न आने वाले वक्त में ताकत की उम्मीद है तो ऐसा व्यक्ति रोजों के बजाए फिदया दे सकता है।

 

2. सवाल : बालिग लड़का जिसे अभी दाढ़ी नहीं आई है क्या उसे इमाम बनाया जा सकता है?

जवाब : अगर उसमें इमामत के दीगर शराइत भी पाए जाते हैं तो उसे इमाम बनाने में कोई हर्ज नहीं।

 

3. सवाल : केकड़ा खाना या उसका सूप पीना कैसा?

जवाब : जायज नहीं बल्कि हराम है।

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