मुंशी प्रेमचंद जन्मदिवस : पुस्तकालय का उद्घाटन, परिचर्चा, नुक्कड़ नाटक व गाए गीत

Spread the love
मुंशी प्रेमचंद जन्मदिवस : पुस्तकालय का उद्घाटन, परिचर्चा, नुक्कड़ नाटक व गाए गीत
प्रेमचंद (31 जुलाई 1880 - 8 अक्टूबर 1936

गोरखपुर। दिशा छात्र संगठन की ओर से मुंशी प्रेमचंद के जन्मदिवस के मौके पर संस्कृति कुटीर, कल्याणपुर, जाफ़राबाज़ार में 'शहीद भगतसिंह पुस्तकालय' का उद्घाटन किया गया।

पुस्तकालय का उद्घाटन शिक्षक नेता जगदीश पाण्डेय ने फीता काटकर किया। कार्यक्रम की शुरुआत प्रेमचन्द, शहीद भगतसिंह, अरविन्द और मीनाक्षी के तस्वीरों पर माल्यार्पण के साथ हुई। कार्यक्रम में सफ़दर हाशमी द्वारा लिखित नुक्कड़ नाटक 'राजा का बाजा' की प्रस्तुति की गयी। साथ ही 'आ गये यहां जवा क़दम', 'दुनिया के हर सवाल के हम ही ज़वाब हैं' आदि क्रान्तिकारी गीत गाये गये।

कार्यक्रम में शिक्षक नेता जगदीश पाण्डेय, आह्वान पत्रिका के सम्पादक प्रसेन और सामाजिक कार्यकर्ता रुबी ने बात रखी। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिवनन्दन सहाय ने की।

वक्ताओं ने कहा कि पुस्तकालय जैसी संस्थाएं आने वाली पीढ़ियों के निर्माण का काम करती हैं। आज के दौर में जब चारो तरफ़ घटिया गानों-फिल्मों का बाज़ार बच्चों तक के मन में ज़हर घोलने का काम कर रहा है। सही विचार पहुंचने के माध्यम कम होते जा रहे हैं। ऐसे दौर में पुस्तकालय इस अतार्किकता-अवैज्ञानिकता के घटाटोप के बरक्स सही विचारों को पहुंचाने का माध्यम है। राष्ट्रीय आन्दोलन के दौर में भी भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों के क्रान्तिकारी व्यक्तित्व को गढ़ने में पुस्तकालयों की बहुत भूमिका रही। आज के दौर में भी यह पुस्तकालय समाज में परिवर्तनकामी विचारों का केन्द्र बनेगा।

आह्वान पत्रिका के सम्पादक प्रसेन ने आज के दौर में प्रेमचन्द की विरासत और उनकी प्रासंगिकता' पर बात रखते हुए कहा कि प्रेमचन्द सच्चे अर्थों में जनता के लेखक थे। उन्होंने अपने लेखन का विषय समाज के उस वर्ग की दुःख-तकलीफ़ को बनाया जो वर्ग उसके पहले कभी साहित्य और लेखन के केन्द्र में नहीं रहा। अपनी लेखनी के माध्यम से न केवल उन्होंने अपने दौर में ब्रिटिश हुक़ूमत की जड़ों पर गहरी चोट की, बल्कि भारतीय सामाजिक ढांचे में मौजूद तमाम कुरीतियों जातिवाद, सांप्रदायिकता आदि पर भी करारा प्रहार किया। अपनी इस लेखकीय प्रतिबद्धता और ईमानदारी की कीमत उन्हें बार-बार चुकानी पड़ी। सोजे-वतन जैसी उनकी रचना को जब्त कर लिया गया।

आज के दौर में जब लूट पर टिका मौजूदा सामाजिक ढांचा लोगों को तबाह कर रहा है, हर दिन हज़ारों बच्चे भूख और कुपोषण का शिकार होकर मौत के मुंह में जा रहे हैं, हर साल लाखों नौजवान हताशा और अवसाद का शिकार होकर आत्महत्या तक के क़दम उठा रहे हैं। दूसरी ओर फ़ासीवादी ताक़तें देश की पोर-पोर में साम्प्रदायिकता का ज़हर बोने में लगी हुई हैं। ऐसे दौर में प्रेमचन्द की विरासत को मानने वालों का फ़र्ज़ है कि वह साहित्य का इस्तेमाल भी प्रेमचन्द की तरह मौजूदा हालात का मुक़ाबला करने के लिए करें। सामाजिक कार्यकर्ता रुबी ने पुस्तकालय के महत्व पर बात रखी। कार्यक्रम का संचालन अंजलि ने किया। कार्यक्रम में रेलवे कर्मचारी नेता जयनारायण शाह, सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप विक्रांत, आज़म अनवर, विजय शंकर, चंद्र प्रकाश, सौम्या, धर्मराज, अंजलि, प्रेमचन्द, नीशू, शिवा, अविनाश, अमित, मुकुल, ज्ञान, संजय, प्रियांशु, ध्रुव आदि शामिल हुए।

  • Related Posts

    अनिल कुमार मौर्य एक बार फिर बने इंजए के जिलाध्यक्ष

    Spread the love

    Spread the loveजमशेदपुर, झारखंड। इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन (IJA) की जिला पूर्वी सिंहभूम इकाई का पुनर्गठन साकची, हाजी अब्दुल रहीम कॉम्प्लेक्स स्थित जिला कार्यालय में किया गया।    यह पुनर्गठन राष्ट्रीय…

    सांप्रदायिकता पर निर्मित फ़िल्म ‘फ़िराक़’ दिखाई गई

    Spread the love

    Spread the loveगोरखपुर। गोरखपुर सिनेफाइल्स की ओर से ‘शहीद भगत सिंह पुस्तकालय’, संस्कृति कुटीर जाफ़रा बाजार में नंदिता दास द्वारा सांप्रदायिकता पर निर्मित फ़िल्म ‘फ़िराक़’ की स्क्रीनिंग किया गए। कार्यक्रम…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *