एनडीए सरकार का पहला बजट : जानिए बजट में किसके लिए क्या है खास

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इंजमाम खान
"द आवाज़"
NDA Budget 2024

गोरखपुर । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल का पहला बजट बीते मंगलवार 23 जुलाई को वित्त मंत्री सीतारमण द्वारा संसद में पेश किया। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बजट में कोई नई चीज़ या पहल उल्लेखनीय नहीं है, यह बजट पिछले बजट के मुकाबले बहुत ज्यादा बेहतर साबित नहीं हो सकेगा। जबकि सरकार मौजूदा बजट में महिलाओं, गरीबों, किसानों के उत्थान की बात करते हुए बजट को विकसित भारत की ओर अग्रसित करने वाल करार दे रही है। वहीं विपक्षी दलों ने इसे निराशावादी और कुर्सी बचाऊ करार देते हुए सत्ता दल की बातों को साफ नकार दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि बजट में सत्ता पक्ष पर राजनीतिक दबाव साफ दिख रहा है। देखा गया है कि कुल मिला कर सहयोगी पार्टियों का भरपूर ध्यान रखा गया है। नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू के लिए 74 हजार करोड़ रुपए का बजट दिया जा रहा है ,बिहार और आंध्रप्रदेश पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। वहां की सड़कें, हॉस्पिटल इत्यादि को बनाने के लिए विशेष पैकेज दिया गया है। हालांकि सत्ता दल को सभी राज्यों को एक ही तरह से देखना चाहिए। सोना,चांदी, प्लेटिनम, मोबाइल्स आदि की कीमत में गिरावट आई है। पिछले चुनाव में देखा गया कि महिलाओं को ज़्यादा महत्व दिया गया लेकिन उनके लिए इस बजट में कोई ख़ास उल्लेख नहीं है। 2017 से एक ही तरह से चल रही है 'मात्र वंदना योजना' जिसके तहत गर्भवती महिलाओं को 5000 रुपए दिया जा रहा है ये उम्मीद थी कि इसमें कुछ बढ़त देखी जा सकती है। महिलाओं के बजट में 3 लाख करोड़ रूपए खर्च करने का फैसला सरकार ने जरूर लिया है लेकिन इसका कोई प्रभाव आम महिलाओं पर नहीं देख पाया जाएगा। आंगनवाड़ी का बजट भी ज्यों का त्यों है अगर इसके बजट में बढ़त होती तो महिलाओं को खासा फायदा पहुंचता। अगर सामान्य वर्ग के लोगों की राय को देखा जाए तो वह इस बजट को आम नहीं मानते। उनका कहना है कि यह बजट आम नहीं खास लग रहा है। इसमें आम लोगों की जेब का ख्याल नहीं रखा गया है। आम लोगों को अपनी कमर कस लेनी होगी। रोजगार और युवाओं के लिए 1.5 लाख करोड़ का बजट बना है, लेकिन देखा जाए तो पिछले बजट में भी यह दावा किया गया था कि बेरोजगारों को फायदा पहुंचाया जाएगा लेकिन ऐसा करने में सरकार सक्षम नहीं हो सकी थी। विशेषज्ञों का मानना है कि बजट में इससे भी बेहतर रूप से गरीबों और बेरोजगारों पर ध्यान देना चाहिए था।

"अधिवक्ता तौहीद अहमद"

कानूनी मामलों के जानकार अधिवक्ता तौहीद अहमद का कहना है कि इस बजट में टैक्स भुगतान करने वालों को राहत मिली है। जीवन रक्षक व कैंसर जैसी दवाओं पर कस्टम ड्यूटी कटने से आम जनता को भी राहत मिलेगी परंतु "Short term capital gain" में 5% वृद्धि करने से पिछले वर्षों इक्विटी मार्केट में भारतीय निवेशकों का बढ़ा रुझान अब कम हो जाएगा जिससे मार्केट में पैसे की आमदनी कम होगी।

"शिक्षक मुहम्मद आज़म"

शिक्षक मुहम्मद आज़म ने कहा कि आज का बजट आशा के अनुरूप नहीं रहा, घोर निराशा हुई, मध्यम वर्गीय परिवार के लिए कुछ नहीं है। महंगाई को रोकने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं बताया गया। मोबाइल रिचार्ज महंगा हो गया।

"नायब काज़ी मुफ्ती मुहम्मद अज़हर शम्सी"

मुस्लिम धर्मगुरु नायब काज़ी मुफ्ती मुहम्मद अज़हर शम्सी ने कहा कि बजट में किसानों और छात्रों के लिए बात ज़रूर की गई है लेकिन मुकम्मल तौर पर हमारी अपेक्षाएं पूर्ण नहीं हुईं। कुल का हासिल यह कि इस बजट में कुछ खास बदलाव लाने की कोशिश नज़र नहीं आई।

"अंजली - छात्रा व केंद्रीय परिषद सदस्य, दिशा छात्र संगठन"

दिशा छात्र संगठन की केंद्रीय परिषद सदस्य व छात्रा अंजली ने हालिया पेश किए गए बजट पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस बजट के ज़रिये मोदी सरकार ने एक बार फिर छात्रों नौजवानों के भविष्य पर हमला बोला है। मीडिया में उछाले जा रहे आंकड़ों के मुताबिक़ इस बार स्कूली शिक्षा के बजट में पिछले साल की तुलना में 561 करोड़ की वृद्धि कर 73008 करोड़ आवंटित किया गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि अगर इस बजट को कुल बजट की तुलना में देखें तो 2023 की अपेक्षा इसमें 0.17 फ़ीसदी की कमी आयी है और इसी तरह इस बजट को महंगाई से प्रतिसंतुलित करने पर आंकड़ों की सारी बाज़ीगरी खुल कर सामने आ जाती है। इस रूप में यह बजट स्कूली शिक्षा तन्त्र के इन्फ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करना तो दूर जो इन्फ्रास्ट्रक्चर पहले से मौजूद है उसे सुचारू रूप से चला पाने और संरक्षित कर पाने में भी असफल होगा। मोदी सरकार के इस कदम से निजी विद्यालयों को फायदा होगा और शिक्षा के बाज़ारीकरण की रफ़्तार पहले से कई गुना तेज़ हो जायेगी और इस प्रक्रिया में देश के करोड़ों मेहनतकशों के बच्चों को स्कूली शिक्षा से भी बाहर होना पड़ेगा।

उन्होंने रोज़गार पर हमसे बात करते हुए कहा कि कमोबेश यही हालत रोज़गार की भी है। रोज़गार पैदा करने और नौजवानों में स्किल पैदा करने के लिए निर्मला सीतारमण द्वारा तीन योजनाओं की घोषणा की गयी है। कोई भी व्यक्ति जो तार्किक हो, फ़ासिस्टों और गोदी मीडिया के प्रभाव में ना हो, वो आसानी से इन योजनाओं के खोखलेपन को समझ सकता है। पेश की गयी योजनाओं में से एक योजना है प्रधानमंत्री इण्टर्नशिप योजना। इस योजना के मुताबिक़ अगले 5 सालों में देश की 500 सर्वोच्च कम्पनियाँ 1 करोड़ नौजवानों को इण्टर्नशिप देंगी। यानी ये 500 कम्पनियाँ हर साल 20 लाख नौजवानों को इण्टर्नशिप देंगी। यानी हर कम्पनी हर साल 4000 नौजवानों को इण्टर्नशिप देगी। आज जब देश का जॉब मार्केट तेजी से सिकुड़ रहा है और अर्थव्यवस्था मन्दी की शिकार है, उपभोग में गिरावट की बात ख़ुद सरकार मान रही है तब ऐसे दिवा स्वपन दिखाकर मोदी सरकार देश की जनता को गुमराह करने में लगी हुयी है। दूसरी बात यह है कि मोदी सरकार इण्टर्नशिप की बात कर रही है पक्के रोज़गार की नहीं। सेण्टर फॉर मोनेटरिंग इण्डियन इकॉनोमी के मुताबिक़ 2019-24 के बीच बेरोज़गारों की संख्या में 1.2 करोड़ की वृद्धि हुयी है। मतलब मोदी सरकार के इण्टर्नशिप के जुमले को रोज़गार मान भी लिया जाय तो पिछले 5 सालों में बेरोज़गारों की संख्या में हुयी वृद्धि के बराबर भी रोज़गार पैदा नहीं हो रहा है।

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