

"सात करोड़ मुसलमानों को शुद्ध करना नामुमकिन है, और इसी तरह यह सोचना भी फिजूल है कि पच्चीस करोड़ हिन्दुओं से इस्लाम क़बूल करवाया जा सकता है। मगर हाँ, यह आसान है कि हम सब ग़ुलामी की जंजीरें अपने गर्दन में डाले रहें।"
ये थे अशफ़ाक़ उल्ला खाँ के प्रेरणादायक शब्द, जिन्होंने न केवल भारत की आज़ादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी बल्कि एक ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ सभी धर्मों के लोग साथ रहें। आज, 22 अक्टूबर को, हम काकोरी एक्शन के इस अमर शहीद का 124वाँ जन्मदिवस मना रहे हैं। उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में जन्मे अशफ़ाक़ ने मात्र 20 साल की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में कदम रखा, और अपनी शहादत से देश की आत्मा पर एक अमिट छाप छोड़ दी।
एक क्रांतिकारी का जन्म
अशफ़ाक़ उल्ला खाँ का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को शाहजहाँपुर में हुआ था। बाल्यावस्था से ही वे देश की आज़ादी के संघर्ष से प्रभावित थे। उनके दिल में भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से आज़ाद कराने की प्रबल इच्छा थी। प्रारंभ में, महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन ने उन्हें आकर्षित किया। लेकिन 1922 में चौरी चौरा कांड के बाद गाँधी जी द्वारा आन्दोलन वापस लेने से वे निराश हो गए।
अशफ़ाक़ ने हार मानने के बजाय क्रांतिकारी मार्ग का चयन किया और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) से जुड़ गए, जिसका उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करना था।
काकोरी कांड: स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण मोड़
9 अगस्त, 1925 को, अशफ़ाक़ और उनके साथी HRA के क्रांतिकारियों ने काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया। यह केवल एक डकैती नहीं थी, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य को एक प्रतीकात्मक चोट थी। इस धन का उपयोग हथियार खरीदने और भविष्य के क्रांतिकारी अभियानों को आगे बढ़ाने के लिए किया जाना था।
काकोरी रेलवे स्टेशन पर ब्रिटिश खजाने से भरी ट्रेन को लूटने का साहसिक कदम ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत संदेश था। इस घटना के बाद अंग्रेज़ी हुकूमत ने क्रांतिकारियों की खोजबीन तेज कर दी थी, और अशफ़ाक़ सहित उनके सभी साथियों को पकड़ने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया।
गद्दारी और गिरफ्तारी
कई महीनों तक अशफ़ाक़ को अंग्रेज़ी हुकूमत पकड़ने में असफल रही। लेकिन दुर्भाग्यवश, उन्हें अपने ही एक दोस्त की गद्दारी के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। इस विश्वासघात ने न केवल अशफ़ाक़ बल्कि समस्त स्वतंत्रता संग्रामियों के दिलों को गहरा आघात पहुँचाया। गिरफ्तारी के बाद उनका मुकदमा चला, जहाँ उन्होंने और उनके साथियों ने बहादुरी से अंग्रेज़ों का सामना किया। अंततः, अशफ़ाक़ और उनके साथी, जिनमें उनके प्रिय मित्र राम प्रसाद बिस्मिल भी शामिल थे, को फाँसी की सज़ा सुनाई गई।
अशफ़ाक़ एक मुसलमान थे, और बिस्मिल एक हिंदू। बावजूद इसके, दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। उनके बीच का यह अटूट बंधन उस समय के साम्प्रदायिक विभाजन के खिलाफ एक मजबूत संदेश था। जब आज धर्म के नाम पर समाज को बाँटने की कोशिश की जा रही है, तब अशफ़ाक़ और बिस्मिल की यह मित्रता उन ताक़तों के मुँह पर करारा तमाचा है जो धर्म के नाम पर नफरत फैलाते हैं।
शहीद का अमर योगदान
19 दिसंबर, 1927 को अशफ़ाक़ उल्ला खाँ को फैजाबाद जेल में फाँसी दी गई। उनकी शहादत, बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारियों के साथ, स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक बहुत बड़ा आघात थी। लेकिन उनकी मृत्यु ने उन्हें अमर बना दिया। उनकी कुर्बानी ने अनगिनत युवाओं को प्रेरित किया और क्रांति की ज्वाला को और प्रज्वलित किया।
आज, जब भारत में धार्मिक असहिष्णुता और साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएँ बढ़ रही हैं, अशफ़ाक़ का जीवन हमें यह याद दिलाता है कि स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा हिन्दू-मुस्लिम एकता और भाईचारे में निहित थी। उन्होंने एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहाँ सभी धर्मों के लोग साथ मिलकर एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकें।
हिंदू-मुस्लिम एकता: आज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश
जब कुछ ताक़तें हिंदू और मुसलमानों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं, तब अशफ़ाक़ और बिस्मिल की मित्रता आज के समय के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा बन जाती है। उनकी यह दोस्ती न केवल धार्मिक एकता की मिसाल थी, बल्कि यह साबित करती है कि असली लड़ाई स्वतंत्रता और समानता के लिए है, न कि धर्म के नाम पर विभाजन के लिए।
उन्होंने केवल अंग्रेजों से स्वतंत्रता की लड़ाई नहीं लड़ी, बल्कि एक ऐसे समाज का सपना देखा जहाँ न्याय और समानता का अधिकार सभी को मिले। अशफ़ाक़ के शब्द आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं: सात करोड़ मुसलमानों को शुद्ध करना नामुमकिन है, और पच्चीस करोड़ हिंदुओं को इस्लाम क़बूल कराना भी व्यर्थ है, लेकिन हम सब को एकजुट करना मुमकिन है और यही असली लड़ाई है।
आज की चुनौतियों में अशफ़ाक़ की विरासत
अशफ़ाक़ उल्ला खाँ की विरासत केवल इतिहास की किताबों तक सीमित नहीं है। उनके विचार और उनके आदर्श आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने 1920 के दशक में थे। आज, जब फासीवाद और साम्प्रदायिकता समाज में उभर रहे हैं, उनके आदर्श हमें फिर से एकजुट होने की प्रेरणा देते हैं।
दिशा छात्र संगठन जैसे कई संगठन आज अशफ़ाक़ के विचारों को युवाओं के बीच पहुँचा रहे हैं। वे छात्रों को यह याद दिला रहे हैं कि अशफ़ाक़ की लड़ाई केवल अंग्रेजों के खिलाफ नहीं थी, बल्कि एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए थी जहाँ हर व्यक्ति को न्याय और समानता का अधिकार मिले।
अशफ़ाक़ उल्ला खाँ का अदम्य साहस
अशफ़ाक़ उल्ला खाँ को शहीद हुए लगभग एक सदी बीत चुकी है, लेकिन उनकी आत्मा आज भी जीवित है। उनका जीवन साहस, एकता और बलिदान का प्रतीक था। आज जब हम उनके योगदान को याद करते हैं, तो हमें उनके द्वारा स्थापित मूल्यों को भी याद रखना चाहिए—ऐसे मूल्य जो हमें सभी समुदायों के बीच एकता और न्याय के लिए खड़े होने का संदेश देते हैं।
अशफ़ाक़ का जीवन हमें यह सिखाता है कि असली लड़ाई अन्याय के खिलाफ है, चाहे वह विदेशी शासन हो या हमारे समाज के अंदर का अन्याय। उनकी प्रेरणा आज भी हमारे लिए एक मार्गदर्शक है, और हमें उनकी विरासत को आगे बढ़ाना होगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. अशफ़ाक़ उल्ला खाँ का काकोरी कांड में क्या योगदान था?
अशफ़ाक़ उल्ला खाँ काकोरी ट्रेन डकैती के मुख्य क्रांतिकारियों में से एक थे। उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर ब्रिटिश खजाने से भरी ट्रेन को लूटा, ताकि इस धन का उपयोग क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए किया जा सके।
2. अशफ़ाक़ उल्ला खाँ और राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती कैसे बनी?
अशफ़ाक़ एक मुसलमान थे और बिस्मिल एक हिंदू। बावजूद इसके, दोनों ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए साथ मिलकर काम किया। उनकी दोस्ती हिंदू-मुस्लिम एकता का एक उदाहरण थी, और यह क्रांतिकारी संघर्ष के दौरान और भी गहरी होती गई।
3. आज के समय में अशफ़ाक़ उल्ला खाँ की विरासत क्यों महत्वपूर्ण है?
अशफ़ाक़ की विरासत हमें एकता, भाईचारे और अन्याय के खिलाफ खड़े होने का संदेश देती है। आज जब समाज में धार्मिक असहिष्णुता बढ़ रही है, अशफ़ाक़ का जीवन हमें यह याद दिलाता है कि हमें एकजुट होकर साम्प्रदायिकता और अन्याय से लड़ना चाहिए।
4. अशफ़ाक़ उल्ला खाँ की मृत्यु कैसे हुई?
अशफ़ाक़ उल्ला खाँ को काकोरी कांड में उनकी भूमिका के लिए फाँसी की सज़ा सुनाई गई थी। उन्हें 19 दिसंबर, 1927 को फैजाबाद जेल में फाँसी दी गई, और वे स्वतंत्रता संग्राम के महान शहीदों में शामिल हो गए।
5. अशफ़ाक़ उल्ला खाँ की जीवन यात्रा से आज के युवाओं को क्या सन्देश मिलता है?
अशफ़ाक़ का जीवन आज के युवाओं को न्याय, समानता और एकता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देता है। उनकी शहादत यह सिखाती है कि असली लड़ाई स्वतंत्रता और समानता के लिए है, और हमें हमेशा अन्याय के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।