
सैयद फरहान अहमद

Source : Hindustan Times
गोरखपुर। पाकिस्तान के उच्चायुक्त हिन्दुस्तान की नागरिकता। पढ़कर चौंक गए। चौंकना भी लाज़िम है। जनाब यह किरदार है गोरखपुर की मिट्टी से पैदा हुए जस्टिस मोहम्मद इस्माईल का। शहर के उचवां मुहल्ले में पैदा हुए और यहीं मदफन है। जिन्होंने पांच साल (1948-1952) तक भारत में पाकिस्तान उच्चायुक्त का पद संभाला वह भी बिना पाकिस्तान की नागरिकता लिए हुए। उन्होंने बटवांरे के समय शरणार्थियों की सम्पत्तियां के कागजात रि-सेटेेल करने में महती भूमिका निभायी। लाखों शरणार्थियों की सम्पत्ति का विवाद आसान तरीके से हल कर दिया। जब इस पद से सेवानिवृत्त हुए तो उन्हें अमेरिका में पाकिस्तान की ओर से प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। वजह यह रही कि उन्हें उक्त पद ग्रहण करने के लिए पाकिस्तान की नागरिकता लेनी पड़ती इसलिए साफ इंकार कर भारत वापस आ गए। इन्होंने नेहरू-लियाकत समझौते में महती भूमिका निभाई। उनके भतीजे वरिष्ठ चिकित्सक डा. अजीज अहमद ने बताया कि चचा को हिन्दुस्तान से काफी लगाव था। इसलिए उन्होंने इतना बड़ा पद ठुकरा दिया और अपने मादरे वतन को तरजीह दी। उनके भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, विजय लक्ष्मी पंडित से अच्छे ताल्लुक थे। अक्सर उनके उचवां स्थित इस्माईल कोठी पर उन लोगों का आना होता था। 1930 में असहयोग आंदोलन के दौरान जब पं. नेहरू गिरफ्तार हुए तो उनके विरूद्ध मुकदमा लड़ने से इंकार कर दिया। तब खान बहादुर ने उनके खिलाफ मुकदमा लड़ा। जस्टिस इस्माईल के नाती अब्दुल्लाह सेराज बताते हैं कि जस्टिस इस्माईल साहब का खानवादा करीब 1650 ईसवीं में गोरखपुर के उचवां मुहल्ले में बस गया। यही आप की पैदाइश हुई। आप तीन भाईयों में सबसे बड़े थे। शुरू से आप होशियार थे। आपका दाखिला मिशन स्कूल में करवाया गया। यहां पर प्रारम्भिक शिक्षा हासिल की। आपके पिता खान बहादुर मुंशी मोहम्मद खलील नगरपालिका के चेयरमैन थे। आप ने उच्च शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हासिल की। उसके बाद कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैड गए। बैरिस्टर की डिग्री लेकर हिन्दुस्तान में प्रैक्टिस करने लगे। 1932 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज बने। फिर इसके बाद चीफ जस्टिस छत्तीसगढ़ का पद संभाला। जब देश का बंटवारा हुआ तब देश के संसाधनों के बंटवारे के लिए वित्तीय कमेटी बनाई गई। जिसमें आप शामिल रहे। तीन सदस्यी सीमित में जस्टिस पैट्रिक स्पेंस, जस्टिस हीरालाल कानिया व जस्टिस एम इस्माईल बने। इसके बाद शरणार्थियों की सम्पत्ति के रि-सेटेल का मामला आया तब आपको हाई कमीशनर ऑफ पाकिस्तान इन इंडिया लियाकत अली की सहमति पर बनाया गया। वहीं हाई कमीशनर ऑफ इंडिया इन पाकिस्तान श्रीप्रकाश को बनाया गया। लेकिन आपने बिना नागरिकता लिए अपना पांच वर्काषीय र्यकाल पूरी तन्मयता के साथ पूरा करवाया। डा. अजीज अहमद बताते है कि उन्हें अपने मादरेवतन से काफी लगाव था। इसलिए आखरी वक्त यहीं गुजारना पसंद किया। करीब सन् 1955 में उन्नाव में उनका इंतकाल हो गया। यही उचवां के कब्रिस्तान में आपको दफन किया। एक वाकिया बताते हुए कहते है कि जब 1957 में पं. जवाहर लाल नेहरू गोरखपुर तशरीफ लाए तो उन्होंने वर्तमान लालडिग्गी पार्क का नाम बैरिस्टर इस्माईल पार्क कर दिया। वीर बहादुर सिंह के कार्यकाल में पार्क का नाम तब्दील कर दिया। देशभक्त हिन्दुस्तानी ने न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ करने का कार्य किया। जब तक जिदंगी रही लोगों को इंसाफ दिलाने में तत्पर रहे। अफसोस आज हिन्दुस्तान छोड़िए गोरखपुर में उनके नाम से एक सेमिनार कराने की गोरखपुर वालों को तौफीक नहीं हुई। अभी करीब कुछ सालों पहले उनके निवास स्थान से जाने वाली सड़क का नाम जस्टिस इस्माईल मार्ग नगर निगम द्वारा किया गया था।
