
गोरखपुर। माह-ए-रमजान के दूसरे जुमा की नमाज शहर की छोटी बड़ी सभी मस्जिदों में अमन, शांति, खुशहाली, तरक्की व भाईचारे की दुआ के साथ अदा की गई। सभी मस्जिदें नमाजियों से खचाखच भरी रहीं। हर मुसलमान की जुबां पर कलमा का विर्द जारी रहा। हफ्ते की ईद (जुमा) व 13वां रोज़ा रोजेदारों ने अल्लाह की रज़ा में गुजारा। मग़फिरत का अशरा चल रहा है। अल्लाह की इबादत व क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत जारी है।
नमाज़ी नहा धो कर दो बजे से मस्जिद पहुंचने लगे। नम़ाजियों ने सुन्नत नमाज़ अदा की। इमामों ने तकरीर की। इमामों ने मिम्बर पर खड़े होकर ख़ुत्बे में अल्लाह का गुणगान किया। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूद व सलाम पेश किया। जुमा की नमाज़ दोपहर 2:30 बजे सबने मिलकर अदा की। दुआ मांगी। घरों में महिलाओं ने नमाज़ अदा कर कुरआन-ए-पाक की तिलावत की। शाम को सबने मिलकर रोज़ा खोला। रात में तरावीह की नमाज़ पढ़ी गई।
उलमा किराम ने जुमा की तकरीर में बयान की रोज़े की अहमियत
जुमा की तकरीर में उलमा किराम ने नमाज़, रोज़ा, जकात, सदका सहित तमाम विषयों पर चर्चा की। मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि रमज़ान हमदर्दी व गम ख्वारी का महीना है। यह ऐसा महीना है जिसमें मोमिन का रिज़्क बढ़ा दिया जाता है। रमज़ान के महीने में की गई इबादत व नेकी का सवाब कई गुना हो जाता है।
सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह में मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने कहा कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने विभिन्न मौकों पर रमज़ानुल मुबारक की फजीलत बयान फरमाई है और इसकी अज़मत और अहमियत दिलों में बिठाई है। आपने फरमाया है कि यह महीना सब्र का है और सब्र का बदला जन्नत है।
सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा बाज़ार में कारी मुहम्मद अनस रजवी ने कहा कि हम देखते हैं कि आम तौर पर मुसलमान इस महीने में गुनाहों और सामाजिक बुराई पर आधारित कामों से सिरे से बचते हैं या फिर खुले आम करने से परहेज करते हैं। आम दिनों में जो जुआ खेलते हैं वह रमज़ान मे नहीं खेलते। इस मुबारक महीने में शराबी शराब, चोर चोरी और मुजरिम जुर्म करने से शर्माता और डरता है। जो लोग पूरे साल जुमे के अलावा मस्जिदों में नही जाते वह इस महीने हर नमाज़ में मस्जिद जाते हैं। गाली गलौज और लड़ाई झगड़े से लोग दूर रहते हैं। जकात और सदकात से गरीबों और जरुरतमंदों की मदद करते हैं। रोज़ा इफ्तार की महफ़िल करके आपसी सौहार्द की मिसाल कायम करते हैं और इन सबसे समाज में प्यार व मोहब्बत परवान चढ़ता है और नफरतों का खात्मा होता है। यह है रमजान के वह उच्च और मिसाली सामाजिक पहलू जिनकी तरफ लोगों की तवज्जो फिर मोड़ने की जरूरत है।
चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में मौलाना महमूद रज़ा कादरी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम में माह-ए-रमज़ान और उसमें रखे जाने वाले रोज़ों की बहुत अहमियत है। आम तौर पर लोग इस माह-ए-रमज़ान को रोज़े रखने और तरावीह की नमाज़ पढ़ने का महीना समझते हैं जो सही भी है कि इस महीने में खास तौर पर यह काम किए जाते हैं। मगर इस मुक़द्दस महीने की इन कामों के अलावा भी बहुत सी खूबियां हैं जिन पर हम तवज्जो नहीं देते। कुरआन व हदीस और हमारे इमामों और बुजुर्गों ने बताया है कि सामाजिक बुराइयों के खात्मे, आपसी सौहार्द को बढ़ावा देने, गरीबों, यतीमों, बेवाओं की मदद करने, बेरोजगारों को रोजगार के अवसर देने, गरीब छात्रों की शिक्षा के क्षेत्र में मदद करने, गरीब बच्चियों की शादी कराने में आर्थिक मदद देने और उनके उत्थान में रमज़ान का यह महीना अहम किरदार अदा करता है।