शायरी के जरिये अब्दुल्लाह अंसारी की शहादत को किया याद

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चौरी चौरा आंदोलन की बरसी पर मुशायरे का हुआ आयोजन

गोरखपुर। चौरी चौरा आंदोलन की बरसी की पूर्व संध्या पर अंसार अदबी सोसाइटी गोरखपुर के बैनर तले चौरी चौरा क्रांति के नायक शहीद अब्दुल्लाह अंसारी के नाम एक मुशायरा सोमवार की रात रसूलपुर में आयोजित किया गया। शायरों ने एक से बढ़कर एक कलाम सुनाकर खूब वाहवाही लूटी। मुशायरे के कन्वीनर असरार उल हक और कोऑर्डिनेटर समाजसेवी इमरान दानिश ने शहीद अब्दुल्लाह अंसारी की ज़िन्दगी से जुड़ी बातें सांझा की। 

मुशायरे का आगाज सरवत जमाल ने कुछ यूं किया :

“गुलाम कदमों तले पड़ा था पर उसका बेटा, 

उबल पड़ा न समझ है थोड़ा जवान है ना!”

हाफिज नसीरुद्दीन अंसारी ने शहीद अब्दुल्लाह की शहादत को याद करते हुए कहा कि “जमीने हिन्द को खूने जिगर दे कर संवारा है, किताब ए दिल का उनवाँ थे शहीद अब्दुल्लाह अंसारी”। इसी क्रम में दीदार बस्तवी अपना कलाम कुछ यूं पेश किया “आखरी बार मिला है तो ज़रा हंस कर मिल, फिर ये डिम्पल तेरे गालों में नही आएँगे”। वसीम मजहर ने कहा : “हम कभी इस तरह मंज़िल पर पहुंच सकते नही, हम वफादारी निभाएं आप मक्कारी करो”, बहार गोरखपुरी ने “अब जमाना पुराना आ गया, चिट्ठियों का जमाना आ गया” जैसी शानदार शायरी पेश की। इसके अलावा बिस्मिल नूरी, सिद्दीक मजाज, अब्दुल्लाह जामी और शाकिर अली शाकिर ने भी अपनी उम्दा शायरी से महफ़िल में रंग भर दिया। अध्यक्षता शायर सरवत जमाल व संचालन हाफिज़ नासिरुद्दीन नासिर ने किया। इस खास मौके पर सैयद अफराहीम, डॉक्टर ताहिर अली सब्ज़पोश, अरमानउल्लाह अंसारी, डॉ. अशफाक उमर, अरशद जमाल सामानी, सैयद वलीउल इकबाल, काशिफ अली, सईद अहमद, मोहम्मद शोएब, मोहम्मद अहमद, मोहम्मद रेहान, मारूफ समेत बढ़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।

 

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