पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों’ गीत गाकर बच्चों को किया जागरूक, वर्चुअल दुनिया की तुलना में वास्तविक दुनिया को प्राथमिकता दी जाए : प्रसेन

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गोरखपुर। सामाजिक कार्यकर्ता प्रसेन व आकाश ने शनिवार को जामिया अल इस्लाह एकेडमी नौरंगाबाद में समर कैंप के चौथे दिन सफदर हाशमी का मशहूर गीत ‘पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों’ गाकर बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ द्वारा लिखित तराना गाया गया।

 

कुरआन-ए-पाक की तिलावत, हम्द व नात-ए-पाक हाफिज रहमत अली निजामी ने पेश की। शिक्षक आसिफ महमूद व तानिया यासमीन ने शिक्षा की महत्ता पर रोशनी डाली। कारी मुहम्मद अनस रजवी ने सोने व जागने का तरीका व एक हदीस बयान की। ईमेल अकाउंट बनाने का तरीका भी बताया गया।बच्चों के साथ दिलचस्प गेम खेला गया। जीतने वाले बच्चों को शिक्षक अली अहमद द्वारा पुरस्कृत किया गया। 

 

मुख्य वक्ता प्रसेन व आकाश ने बच्चों के ऊपर सोशल मीडिया के प्रभाव पर चर्चा की। कहा कि बच्चों का मन बहुत ही कोमल होता है। इतना कोमल कि बच्चे के मन को हम अच्छी शिक्षा देकर किसी भी आकार में ढाल सकते हैं। हम सभी ने कभी न कभी अपने जीवन में किसी कुम्हार को चाक पर काम करते देखा है। वह मिट्टी के एक बेकार से दिखने वाले टुकड़े को एक खूबसूरत मिट्टी के बर्तन में बदल देता है। वह अपनी कला से मिट्टी को मनचाहा आकार दे देता है। बच्चों के साथ भी कुछ ऐसा ही है। यदि हम उनको अच्छी शिक्षा, अच्छे संस्कार और नैतिकता की शिक्षा दें तो उसे हम देश व समाज का एक अच्छा नागरिक, सुसंस्कृत व्यक्ति बना सकते हैं। 

 

उन्होंने कहा कि आज हमारी युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति व सूचना क्रांति के प्रभाव में आकर एंड्रॉयड स्मार्टफोन का धड़ल्ले से प्रयोग कर रही है। सूचना क्रांति का प्रयोग करना ग़लत नहीं है लेकिन आज तकनीक हमारी युवा पीढ़ी पर हावी होती चली जा रही है। स्मार्टफोन के अधिक व अंधाधुंध प्रयोग से बच्चों के नाजुक दिमाग पर आज गहरा प्रभाव पड़ रहा है। सच तो यह है कि बच्चों में अधिक मोबाइल स्क्रीन का प्रयोग की प्रवृति उनके मानसिक स्वास्थ्य, बौद्धिक विकास, शारीरिक समन्वय और यहां तक ​​कि नींद और खाने की आदतों, उनके अध्ययन को प्रभावित कर रहा है। अत्यधिक ऑनलाइन एक्टिविटी के अनेक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक परिणाम हैं, जिनको लेकर आज हमारे समाज को चेतने की जरूरत है। वास्तविक दुनिया से दूर आज हमारे बच्चे वर्चुअल दुनिया या यूं कहें कि आभासी दुनिया में जी रहे हैं। आज जरूरत इस बात की है कि वर्चुअल दुनिया की तुलना में वास्तविक दुनिया को प्राथमिकता दी जाए ताकि हमारे बच्चों का मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या यूं कहें कि सर्वांगीण विकास हो सके।

 

अंत में बच्चों ने लघु नाटक प्रस्तुत करने का अभ्यास किया। मुल्क में भाईचारगी, एकता व मुहब्बत की दुआ मांगी गई। कैंप में प्रधानाचार्या आयशा खातून, उप प्रधानाचार्या शीरीन आसिफ, बेलाल अहमद, तनवीर, आरजू, अदीबा, फरीदा, मंतशा, फरहीन, आयशा, सना, फरहत, यासमीन, गुल अफ्शा, नाजिया आदि मौजूद रहे।

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