द आवाज़, ब्यूरो। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं। शुक्रवार को उनका आखिरी कार्यकाल दिवस था। उन्होंने आखिरी कार्य दिवस पर मामले की सुनवाई करने वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ की अगुआई की और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मामले पर सुनाया फैसला।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर नौ महीने से सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था। नौ महीने बाद शुक्रवार को आए फैसले में भी यह मामला लटका रह गया। कोर्ट ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर कोई व्यवस्था नहीं दी।
कहा कि एएमयू का मामला नियमित पीठ के सामने जाएगा, जो इस फैसले में दी गई व्यवस्था के आधार पर तय करेगी कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान है कि नहीं।
एक नज़र एएमयू मामले पर
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी सन् 1875 ई. में सर सैयद अहमद खान द्वारा बनवाई थी। AMU की शुरूआत ‘अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज’ के रूप में की गई। मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए बनाई गया था यह संस्थान। इसे विश्वविद्यालय का दर्जा 1920 में दिया गया। इसी दौरान इसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय नाम दिया गया। 1951 और 1965 में इसके अधिनियम में संशोधन किए गए, फ़िर यह विवाद शुरू हो गया, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी माना।
कोर्ट ने कहा कि इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि इसकी स्थापना केंद्रीय अधिनियम के तहत हुई है। जिसके बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। सन् 1981 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला संशोधन हुआ। इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। सन् 2005 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सन् 1981 के एएमयू संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया।
अजीज बाशा फैसला सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज़
सन् 1967 का अजीज बाशा फैसला शुक्रवार को रद्द कर दिया गया। सन् 1965 में ही एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद शुरू होने के बाद उस समय की केंद्र सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर स्वायत्तता को खत्म कर दिया था। इसके बाद अजीज बाशा की ओर से सन् 1967 में सुप्रीम कोर्ट में सरकार का चुनौती दी। तब सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
कोर्ट ने की संविधान के अनुच्छेद 30 की व्याख्या की
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चार-तीन के बहुमत से उपरोक्त फैसला दिया। कुल चार फैसले सात न्यायाधीशों ने दिए। जिसमें जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की ओर से बहुमत का फैसला दिया। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने बहुमत से असहमति जताने वाले अलग से फैसले दिए हैं।
अल्पसंख्यक दर्जा तय होगा इन मानको पर
*अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना का विचार अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति या समूह की ओर से आया होना चाहिए।
* स्थापित शैक्षणिक संस्थान प्रभावी तौर पर अल्पसंख्यक समुदाय के हित के लिए होना चाहिए।
* अल्पसंख्यक संस्थान स्थापित करने के विचार के समायोजन के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा कदम उठाया जाए।
* शैक्षणिक संस्थान का प्रशासनिक संरचना अल्पसंख्यक आचरण का होना चाहिए।
* इसकी स्थापना अल्पसंख्यक समुदायों की रक्षा और प्रोत्साहन के लिए होना चाहिए।