गोरखपुर। मंगलवार 17 रमजान को चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में सामूहिक कुरआन ख्वानी हुई। हजरत आयशा सिद्दीका रदियल्लाहु अन्हा व शोहदा-ए-बद्र के शहीदों को अकीदत का नजराना पेश किया गया।
मस्जिद के इमाम मौलाना महमूद रजा कादरी ने कहा कि उम्मुल मोमिनीन (मोमिनों की मां) हजरत आयशा सिद्दीका पैगंबरे इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवी व इस्लाम धर्म के पहले खलीफा हजरत अबू बक्र रदियल्लाहु अन्हु की पुत्री हैं। आप बहुत विद्वान थीं। आप पैगंबरे इस्लाम से बहुत सी हदीस रिवायत करने वाली हैं। आप इल्म का चमकता हुआ आफताब हैं। आप महिला सशक्तिकरण की सशक्त पहचान हैं। आप पूरी ज़िन्दगी महिलाओं के हक की अलमबरदार रहीं। आपने 17 रमजानुल मुबारक को इस फानी दुनिया को अलविदा कहा। उन्होंने आगे कहा कि 17 रमजान 2 हिजरी को जंग-ए-बद्र हक और बातिल के बीच हुई। जिसमें 313 सहाबा किराम की मदद के लिए फरिश्ते जमीन पर उतरे। जंग-ए-बद्र में इस्लाम धर्म की जीत ने इस्लामी हुकूमत को अरब की एक अजीम कुव्वत बना दिया। इस मौके पर नजरे आलम, इकरार अहमद, नवाब अहमद, अज्जन कुरैशी, असलम, फुजैल, रिजवान करीम, फैजान अली, आतिफ अली, बब्लू आदि मौजूद रहे।
वहीं मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने कहा कि इस्लामी इतिहास की सबसे पहली जंग मुसलमानों ने खुद के बचाव (वॉर ऑफ डिफेंस) में लड़ी। जंग-ए-बद्र में मुसलमानों की तादाद 313 थी। वहीं बातिल कुव्वतों का लश्कर मुसलमानों से तीन गुना से ज्यादा था। जंग-ए-बद्र में कुल 14 सहाबा किराम शहीद हुए। इसके मुकाबले में दुश्मनाने इस्लाम के 70 आदमी मारे गए। जिनमें से 36 हजरत अली रदियल्लाहु अन्हु के हाथों जहन्नम पहुंचे। कुरआन-ए-पाक में है कि “और यकीनन अल्लाह ने तुम लोगों की मदद फरमाई बद्र में, जबकि तुम लोग कमजोर और बे सर ओ सामान थे पस तुम लोग अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम शुक्रगुजार हो जाओ”।
मदरसा रजा-ए-मुस्तफा तुर्कमानपुर में कारी मुहम्मद अनस रजवी ने कहा कि जंग-ए-बद्र में मुसलमानों के पास लड़ने के लिए पूरे हथियार भी न थे। पूरे लश्कर के पास सिर्फ 70 ऊंट और दो घोड़े थे। जिन पर सहाबा बारी-बारी सवारी करते थे। मुसलमानों का हौसला बुलंद था। अल्लाह के फज्ल से अजीम कामयाबी मिली।
मौलाना दानिश रजा अशरफी ने कहा कि उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा तमाम मुसलमानों की मां हैं। आपकी ज़िंदगी का हर पहलू दुनिया की तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है। तकवा परहेजगारी में आपका कोई सानी नहीं हैं। कुरआन-ए-पाक में आपकी पाकीजगी अल्लाह ने बयान की है। पैग़ंबरे इस्लाम की निजी ज़िंदगी की तर्जुमान हजरत आयशा हैं। अंत में सलातो-सलाम पढ़कर पूरी दुनिया में अमन व अमान की दुआ मांगी गई।
माह-ए-रमजान की रौनक चारों ओर
मंगलवार को रोजेदारों ने जमकर इबादत की। 17वां रोजा मुकम्मल हो गया। माह-ए-रमजान की रौनक बढ़ती ही चली जा रही है। मस्जिद व घरों में इबादत और कुरआन-ए-पाक की तिलावत हो रही है। दूसरा अशरा खत्म होने के करीब है। वहीं रमजान का तीसरा अशरा जहन्नम से आजादी का बहुत महत्वपूर्ण है। अंतिम दस दिन की पांच रात यानी 21, 23, 25, 27 व 29 रमजान की रात में से एक शबे कद्र की रात है। जिसमें इबादत का सवाब हजार महीनों की इबादत के सवाब से अफजल है। शबे कद्र में ही कुरआन-ए-पाक नाजिल हुआ। अंतिम दस दिन का एतिकाफ करना पैगंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत है। बाजार पर ईद की खुशियों का रंग चढ़ गया है। वहीं आमना मुस्लिम गर्ल्स इंटर कॉलेज बहरामपुर, इलाहीबाग में हजारों महिलाओं ने मिलकर रोजा इफ्तार कर आपसी सौहार्द की मिसाल पेश की।
रोजाना इस्तेमाल होने वाले पहने हुए जेवरात पर भी जकात देना जरूरी है : उलमा
रमजान हेल्पलाइन नंबर 9454674201 पर मंगलवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा।
1. सवाल : आईने के सामने नमाज पढ़ना कैसा है?
जवाब : इसमें कोई हर्ज नहीं।
2. सवाल : क्या पहने हुए जेवरात जो रोजाना इस्तेमाल में आते हैं उन पर भी जकात देना जरूरी है?
जवाब : हां। रोजाना इस्तेमाल होने वाले पहने हुए जेवरात पर भी जकात देना जरूरी है।
3. सवाल : बगैर वुजू के अजान देना कैसा?
जवाब : ऐसा करना मकरूह है लेकिन अजान अदा हो जाएगी।